Thursday, September 03, 2009

रिस्तो का दामन पकड़ जब मैं चला, मैं चला

रिस्तो का दामन पकड़
जब मैं चला, मैं चला 
मुझे लगा सब हैं  
यहाँ, सब हैं यहाँ. 
एक एक कर जब टूटे रिस्ते 
तब लगा मैं कहाँ, मैं कहाँ. 
कहने को सब अपने हैं 
पर अपने हैं कहाँ, हैं कहाँ.  
ढूंढा बहुत मैं यहाँ,
मैं वहां, जाने कहाँ, जाने कहाँ. 
सब मिले फिर, जो ना मिला 
वो रिस्ता कहाँ, वो रिस्ता कहाँ  
जब मैं देखा, वो कहाँ 
और मैं कहाँ, मैं कहाँ. 
वो रहे जमीं और 
मैं आसमान, मैं आसमान. 
अब मेरे संग मेरे खुदा 
जो छुटा, ये जहाँ, वो जहाँ. 
दर्द हृदय का हमदर्द 
बना, हमदर्द बना. 
जग का छुटा संग  
अपना बना, अपना बना.
शांत हुआ मन मेरा अब 
स्थिर मेरा जहाँ, मेरा जहाँ 
तन का प्रेम जो सिमटा  
मन का विस्तार हुआ, विस्तार हुआ 
भ्रम टूटे कई जो 
सत्य स्वीकार हुआ, स्वीकार हुआ  
हृदय गति मद्धम हुई, अंतर्मन 
का चितकार हुआ, चितकार हुआ. 
डोल उठी वासनाएं सारी, द्वंद  
और हाहाकार हुआ, हाहाकार हुआ 
भंग हो रहे हैं मोह सारे, यह 
नया चमत्कार हुआ, चमत्कार हुआ 
अब मैं ब्रह्म हूँ, ब्रह्म में मैं  
वाह! क्या अविष्कार हुआ, अविष्कार हुआ

Saturday, March 21, 2009

गुजरती हुई बहार की एक भोर

गुजरती हुई बहार की एक भोर
आए हो तुम बन बादल घन-घोर.
छा गए मेरे दिल के आसमान पर
मेरे प्रिये, मेरे प्रीतम, मेरे चित-चोर.

स्थिर पड़े भावों में ये कैसा हैं ज़ोर
हलचल मचा किनारे की ओर.
शांत हैं सब उस पार, मगर
इस पार, ये कैसा सन्नाटे का शोर.



कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...