Friday, October 23, 2015

ख़ुदा, जो कहीं तुमने जन्नत बनाई होगी

ख़ुदा, जो कहीं तुमने जन्नत बनाई होगी,
वो पहाड़ो से झाकती हुई तराई होगी।
खोज़ सके तो खोज़ ले दुनिया 
कही और नहीं बस यहीं तेरी खुदाई होगी।

वक़्त के समंदर से

वक़्त के समंदर से
कुछ बून्द लम्हों के,
हमने क्या चुराए
एक कहानी बन गई,
एक जिंदगानी बन गई। 

लम्हों की शरारत कुछ ऐसी थी

लम्हों की शरारत कुछ ऐसी थी-
उम्र हमे मिला और जिंदगी उन्हें। 

कुछ लिखना था

कुछ लिखना था
लम्हों के कागज़ पे,
ख्वाबों के स्याह से।
कमबख्त जिंदगी की
कलम ही टूट गई। 

सोचा था पता पूछता हुआ

सोचा था पता पूछता हुआ
मंज़िल तक पहुँच जाऊँगा।
मगर यह न पता था कि
राह भी गुमराह करती है।

कही शब्दों का जोड़

कही शब्दों का जोड़,
कभी तस्वीरों की उभार,
हर अभिव्यक्ति मेरी
अंतर्मन का अन्तर्द्वन्द है।
सिमटा हुआ शरीर मेरा,
मन लेकिन स्वछन्द है।

कुछ इस तरह गुज़री है जिंदगी मेरे आगे

कुछ इस तरह गुज़री है जिंदगी मेरे आगे,
जैसे पालक झपक कर निकल गई मेरे आगे।
परत-दर-परत खुलता गया राज़ कहानी का,
शायद, आख़री  किरदार हो एक आईना मेरे आगे। 

दिल में कुछ दर्द छुपाए रहते है

दिल में कुछ दर्द छुपाए रहते है,
होठों पे एक मुस्कान सजाए रहते है।
रह-रह के बेवफ़ा लगती है जिंदगी,
फिरभी हर वक़्त उसे अपनाए रहते है।

पूछो ना हमसे- हमारी मंज़िल क्या है?

पूछो ना हमसे- हमारी मंज़िल क्या है?
मझधार में नाव का साहिल क्या है?
उफनते पानी और तूफानों को छोड़,
रखा इस महफ़िल में क्या है।

ख़ुशी इस बात की है

ख़ुशी इस बात की है, ख़ुदा,  
कि हमारा ग़म भी 
किसी के आँसू पोंछ गया। 

कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...