Wednesday, September 13, 2006

रोते हैं हम, लेकिन सिसकियाँ दबा लेते हैं

रोते हैं हम, लेकिन 
सिसकियाँ दबा लेते हैं
एक हलकी मुस्कान 
होटों पे सजा लेते हैं |
दिल का दर्द, हम कहें किससे  
खुद को ही समझा लेते हैं |
उठते इस तूफान को दिल में समेटे हुए 
खुद ही जलजले का मज़ा लेते हैं |

कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...