Monday, February 28, 2011

हतास भी नहीं थे, निराश भी नहीं थे

हतास भी नहीं थे 
निराश भी नहीं थे
लेकिन जिंदगी के
पास भी नहीं थे  

तृप्त भी नहीं थे
प्यास भी नहीं थे
सपने कुछ
खास भी नहीं थे

आजाद भी नहीं थे
दास भी नहीं थे
अनोखे आश भी नहीं थे

गम भी नहीं थे 
हास भी नहीं थे
क्योकि तुम पास नहीं थे |

कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...