जब से होश सम्हाल हैं
तबसे तुम्हें चलते देखा हैं
पल-पल की गिनती तुमसे होते देखा हैं
क्या कभी तुम थकती नहीं
साँसें,
क्यों कभी तुम रूकती नहीं!
Sunday, March 29, 2015
साँसें, क्यों कभी तुम रूकती नहीं
Saturday, March 28, 2015
ख़ामोशियों में छुपी हैं सिसकियाँ कई
ख़ामोशियों में छुपी हैं सिसकियाँ कई,
डर लगता हैं फ़िसल जाए न कहीं।
बेड़ियों में बंधी हैं तन्हाईयाँ नई,
मौम सा पिघल जाए न कहीं।
सुबक-सुबक के रोता हैं यह दिल,
बूंद बनके निकल जाए न कहीं।
डर लगता हैं फ़िसल जाए न कहीं।
बेड़ियों में बंधी हैं तन्हाईयाँ नई,
मौम सा पिघल जाए न कहीं।
सुबक-सुबक के रोता हैं यह दिल,
बूंद बनके निकल जाए न कहीं।
Saturday, March 14, 2015
हमने ख़ुदा से जो ख़ुदाई माँगली
हमने ख़ुदा से जो ख़ुदाई माँगली,
जिंदगी के बदले, जैसे तन्हाई माँगली।
अब तो साँसे भी चलती हैं रुक रुक के
एक गुस्ताख़ी की, ख़ुदा, क्या भरपाई माँगली।
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कभी रगों के लहू से टपकी
कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से। टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...
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कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से। टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...
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दूर तक जाते रास्तों पर मैं दूर तक चला. मिले पड़ाव कई मगर ठिकाना एक न मिला. बस अब नहीं, हर बार यह सोच, एक कदम और चला. जब मुड़ के देखा तब दिखा...
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हतास भी नहीं थे निराश भी नहीं थे लेकिन जिंदगी के पास भी नहीं थे तृप्त भी नहीं थे प्यास भी नहीं थे सपने कुछ खास भी नहीं ...