Tuesday, August 16, 2016

कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी,
तो कभी बदन के पसीने से।
कभी थरथराते होटों से,
तो कभी धधकते सीने से। 
टपकी है हर बार,
आजादी,
यहाँ घुट-घुट के जीने से।


मैं आजाद हूँ... क्या ?

Sunday, February 14, 2016

आज दोस्तों ने पूछा

आज दोस्तों ने पूछा-
अब तो तुम्हारी कविताएँ
बदल गई होंगी ?
मैंने कहा- हाँ बिलकुल,
कल तक जो कागजों पे थी,
आज हकीकत बन गई है।   

Friday, October 23, 2015

ख़ुदा, जो कहीं तुमने जन्नत बनाई होगी

ख़ुदा, जो कहीं तुमने जन्नत बनाई होगी,
वो पहाड़ो से झाकती हुई तराई होगी।
खोज़ सके तो खोज़ ले दुनिया 
कही और नहीं बस यहीं तेरी खुदाई होगी।

वक़्त के समंदर से

वक़्त के समंदर से
कुछ बून्द लम्हों के,
हमने क्या चुराए
एक कहानी बन गई,
एक जिंदगानी बन गई। 

लम्हों की शरारत कुछ ऐसी थी

लम्हों की शरारत कुछ ऐसी थी-
उम्र हमे मिला और जिंदगी उन्हें। 

कुछ लिखना था

कुछ लिखना था
लम्हों के कागज़ पे,
ख्वाबों के स्याह से।
कमबख्त जिंदगी की
कलम ही टूट गई। 

सोचा था पता पूछता हुआ

सोचा था पता पूछता हुआ
मंज़िल तक पहुँच जाऊँगा।
मगर यह न पता था कि
राह भी गुमराह करती है।

कही शब्दों का जोड़

कही शब्दों का जोड़,
कभी तस्वीरों की उभार,
हर अभिव्यक्ति मेरी
अंतर्मन का अन्तर्द्वन्द है।
सिमटा हुआ शरीर मेरा,
मन लेकिन स्वछन्द है।

कुछ इस तरह गुज़री है जिंदगी मेरे आगे

कुछ इस तरह गुज़री है जिंदगी मेरे आगे,
जैसे पालक झपक कर निकल गई मेरे आगे।
परत-दर-परत खुलता गया राज़ कहानी का,
शायद, आख़री  किरदार हो एक आईना मेरे आगे। 

दिल में कुछ दर्द छुपाए रहते है

दिल में कुछ दर्द छुपाए रहते है,
होठों पे एक मुस्कान सजाए रहते है।
रह-रह के बेवफ़ा लगती है जिंदगी,
फिरभी हर वक़्त उसे अपनाए रहते है।

पूछो ना हमसे- हमारी मंज़िल क्या है?

पूछो ना हमसे- हमारी मंज़िल क्या है?
मझधार में नाव का साहिल क्या है?
उफनते पानी और तूफानों को छोड़,
रखा इस महफ़िल में क्या है।

ख़ुशी इस बात की है

ख़ुशी इस बात की है, ख़ुदा,  
कि हमारा ग़म भी 
किसी के आँसू पोंछ गया। 

Tuesday, June 16, 2015

वक़्त के साथ साहिल बदल जाता है

वक़्त के साथ साहिल बदल जाता है।
पल दो पल में आशिक़-ए-दिल बदल जाता है।
क्या है यह राह-ए-जिंदगी का सफ़र,
कि चलते-चलते मौज़-ए-मंज़िल बदल जाता है।

Wednesday, June 10, 2015

लिखूँ कुछ भी ज़िक्र तेरा ही रहता है

लिखूँ कुछ भी ज़िक्र तेरा ही रहता है,
देखूँ जिसे भी फ़िक्र तेरा ही रहता है।
दिवाना तो नहीं लेकिन, खुदा,
दिवानगी में झुका सर मेरा ही रहता है।

Wednesday, May 06, 2015

तस्वीरें बहुत कुछ बोलती है-2

तस्वीरें बहुत कुछ बोलती है।

नाज़ुक मोड़ पे खड़े रिस्तो को
रेशमी धागों से जोड़ती है।
सुन्न पड़े भावो में जीवन
के सुर टटोलती है।

तस्वीरें बहुत कुछ बोलती है।

खोल उन पन्नो को, जिनकी सिर्फ़ यादे बची,
थमी-सी जिंदगी में प्राण घोलती है,
और जीवंत हो उठता है तन-मन मेरा;
छोटी ही सही वो पल मोल की है।

तस्वीरें बहुत कुछ बोलती है।

Tuesday, May 05, 2015

मेरे जीवन का आधार तुम

मेरे जीवन का आधार तुम
मेरे कल-आज-कल का व्यापार तुम
मेरी बोली की झंकार तुम
मेरी बेचैनी की अश्रुधार तुम
मेरे हृदय का प्यार तुम
मेरे जीत का श्रृंगार तुम
मेरे ममत्व का दुलार तुम
मेरे क्रोध का ज्वार तुम
मेरी तृष्णा की पुकार तुम
मेरे समर का ललकार तुम
मेरी साधना की ॐकार तुम

क्यों रहता मैं कुछ लिखने को तत्पर

क्यों रहता मैं कुछ लिखने को तत्पर ?
क्यों है भावो की वेदना इतनी प्रखर ?
जो मथानी बनाये रहती हृदय को,
जब-तक यह कागज पे ना उदय हो। 

है क्या यह एकाकीपन की अभिव्यक्ति ?
या मेरी स्वछंद कल्पना की विस्तृति ?
जो उफ़नती नदी सी, तोड़ना चाहती मन-किनार,
और कर जलसमाधि मेरा सम्पूर्ण आकार।

खोजूँ कहाँ इन प्रश्नों के उत्तर? बस,
इसी ख़ोज में लिखता जाता हूँ कि
शायद, एक दिन 
लेखनी खुद देगी इनका उत्तर।  

Monday, May 04, 2015

उस पल... इस पल...

उस पल
में थे तुम साथ कभी
इस पल
में रह गई है याद कोई

उस पल
में निकली थी बात कोई
इस पल
में अब वो याद नहीं

उस पल
में प्यारा तेरा प्यार सखी
इस पल
में दिल की है हार सखी

उस पल
का है अनंत विस्तार  कहीं
इस पल
का जैसे कोई आधार नहीं

उस पल
में उम्र कम लगता
इस पल
में हर क्षण भार कोई

उस पल
का जो है याद प्रिये
इस पल
को करता आघात प्रिये

उस पल
से
इस पल
को
आज़ाद करो
आज़ाद करो
आज़ाद करो !!!
ना बर्बाद करो
ना बर्बाद करो
ना बर्बाद करो!!!






तस्वीरें बहुत कुछ बोलती है

तस्वीरें बहुत कुछ बोलती है।

खट्टी-मीठी यादों को समेटे
जब अपनी पोटली खोलती है,
एक युग दौड़ जाता आँखों के सामने-
ये कहानियाँ बड़े मोल की है !

तस्वीरें बहुत कुछ बोलती है।

कुछ चढ़ते हुए तराने गा के, तो
कभी डूबते नगमों संग डोलती है।
फासलों का करा एहसास कभी,
कुछ नजदीकियाँ खोलती है।

तस्वीरें बहुत कुछ बोलती है।


 

Friday, May 01, 2015

एक पूरी जिंदगी हम जाने किस आश में जिये जाते है।

एक पूरी जिंदगी हम जाने किस आश में जिये जाते है।
कुछ लफ़्जों से बयां कर,
कुछ दिल में दबाये जाते है।
जग से प्रेम का अरमान लिए
ख़ुद को जग में बिसराये जाते है। 

एक पूरी जिंदगी हम जाने किस आश में जिये जाते है।
रह-रह के लगता है घात नया,
रुक-रुक के मलहम लगाए जाते है।
छन-छन कर टूटता रिश्तों का कांच यहाँ
हम गोंद लिए चिपकाये जाते है।

एक पूरी जिंदगी हम जाने किस आश में जिये जाते है।



Thursday, April 30, 2015

डोल उठी धरती

डोल उठी धरती, 
फट गया आसमां 
गिर गए महल सारे 
रो पड़ा इंसा। 

क्यों दम्भ इतना, 
जब हैं धूल जितना 

किस बात पे तू इतराता हैं 
अरे इंसान! 
एक झटके में बिखर जाता हैं 

कुछ तो हया करो तुम 
प्रकृति से थोड़ा तो डरो तुम 

मत भूलो 
तना सर, कट जाता हैं 
झुका हुआ आशीष पता हैं। 


Thursday, April 23, 2015

वक़्त की पुरानी बस्ती में

वक़्त की
पुरानी बस्ती में
आज फिर
यादों के
बिखरे टुकड़ों को
चुनने गया था,
ढूंढने गया था,
या शायद
खोने गया था।


Sunday, March 29, 2015

साँसें, क्यों कभी तुम रूकती नहीं

जब से होश सम्हाल हैं
तबसे तुम्हें चलते देखा हैं
पल-पल की गिनती तुमसे होते देखा हैं
क्या कभी तुम थकती नहीं
साँसें,
क्यों कभी तुम रूकती नहीं!

Saturday, March 28, 2015

ख़ामोशियों में छुपी हैं सिसकियाँ कई

ख़ामोशियों में छुपी हैं सिसकियाँ कई, 
डर लगता हैं फ़िसल जाए न कहीं।
बेड़ियों में बंधी हैं तन्हाईयाँ नई,
मौम सा पिघल जाए न कहीं। 
सुबक-सुबक के रोता हैं यह दिल,
बूंद बनके निकल जाए न कहीं।

Saturday, March 14, 2015

हमने ख़ुदा से जो ख़ुदाई माँगली

हमने ख़ुदा से जो ख़ुदाई माँगली,
जिंदगी के बदले, जैसे तन्हाई माँगली।
अब तो साँसे भी चलती हैं रुक रुक के
एक गुस्ताख़ी की, ख़ुदा, क्या भरपाई माँगली।

Monday, February 23, 2015

कोई भुला आज याद आ रहा हैं

कोई भुला आज याद आ रहा हैं
दिल थम-थम के डूबा जा रहा हैं
वो कौन सा सिरा हैं ऊन नज़रों का
जो रह-रह के चुभा जा रहा हैं

कोई भुला आज याद आ रहा हैं
दर्द नहीं, फिरभी मन दुःखा जा रहा हैं
सपनों का कौन सा परिंदा,
पिंजड़ा तोड़ उड़ा जा रहा हैं

कोई भुला आज याद आ रहा हैं

Sunday, February 22, 2015

मेरे मौला, तेरी इबादत में जो झुका

मेरे मौला,
तेरी इबादत में जो झुका
हैं सर मेरा
वो कभी उठने ना पाए

खुबशुरत हैं बस तेरा चेहरा
जिसे कभी देखा भी नहीं,
लेकिन नज़रे कभी हटने ना पाए

फ़ना हो जाये पतंगा
तेरे इश्क में मालिक
यह आग कभी बुझने ना पाए

तेरी ही चाहत दिन-रात रहे
कोई आरज़ू दूसरी,
देखो सटने ना पाए 

समंदर की राह तक-तक
घुल रहा बूंद, देखों 
यह साबुत बचने ना पाए

Saturday, February 21, 2015

जाने किस तरफ मुड़ी हैं जिंदगी

जाने किस तरफ मुड़ी हैं जिंदगी
की चलते हुए भी खड़ी हैं जिंदगी
दरमियाँ घटा हैं कहीं,
और कहीं फासलों की हैं जिंदगी 

Tuesday, November 18, 2014

रात की चादर

रात की चादर 
सन्नाटे का शोर 
और 
चेहरे को भिगोती 
मंद-मंद ठंडी हवा 

शाम का घिरना

शाम का घिरना
बारिश का आना
ठंडी बहकी हवाओं में
दिल का सिहर जाना
कुछ ऐसा हैं मौसम 

पल का क्या हैं

पल का क्या हैं
गुज़र ही जायेगा
एक कल (yesterday) चला गया
दूसरा कल आएगा
यादों के तकिये पे
सपनों के बिस्तर पर
तनहा दिल आया था
और तनहा चला जायेगा

लफ्ज़ो पे दुनिया मरती हैं

लफ्ज़ो पे दुनिया मरती हैं 
यहाँ प्यार भी एक "lip-service" हैं
"I love you" का स्वांग देखो
एक रटा रटाया ख्याल लगता हैं
कहने वाला बेदिली से कहता हैं
सुनने वाला बेपरवाह लगता हैं

Monday, November 10, 2014

यह ख़ता हैं ख़ुदा की

यह ख़ता हैं ख़ुदा की
या सज़ा हैं चाँद की
कि अकेला हैं
तारों के साथ भी,
और
तारों के बाद भी

Monday, October 27, 2014

ओस की चादर ओढ़े

ओस की चादर ओढ़े हुए
देखो हरियाली अपने
ख्वाबों की समंदर
में डूबी जा रही हैं
बादलों के पीछे से
झांकता हुआ सूरज
मानो शर्माते हुए
कह रहा हैं-
देखो मैं आ गया,
अब तो आँखें खोलो

अंगड़ाई लेती हुई हरियाली
मंद-मंद शीतल बहती हुई
हवा के हाथों से
ओस के चादर को
अपने सिर तक खींचती हैं
और
करबट बदल के फिर सो जाती हैं

Friday, October 24, 2014

टूटे हुए रिस्ते के धागों

टूटे हुए रिस्ते के धागों
को जोड़ने चला हूँ
मैं फिर से मरने चला हूँ,
मैं फिर से जीने चला हूँ

ख़ुद के क़दमों की आहटों
से डर जाता था कभी
आज फिर दूसरों की
आहटों को सुनने चला हूँ

मैं फिर से जीने चला हूँ

मुस्कुराहटों के पीछे न जाने
कब से ख़ामोशी रोती रहीं
आज खामोश रहते हुए भी
मैं हँसने चला हूँ

मैं फिर से जीने चला हूँ



Sunday, October 12, 2014

दिल में जो दस्तक तेरा 

दिल में जो दस्तक तेरा

वो हैं मेहबूब मेरा 

हाथ उठा के क्या करूँ इबादत 

और सर झुका के क्या सजदा 

जब मुझे में तू हैं, तुझमें मैं

फिर बंदा कौन, कौन हैं ख़ुदा 

Friday, October 10, 2014

कुछ ही दूर

कुछ ही दूर,

और

कुछ ही देर 

तो चला हूँ मैं।

लेकिन 

ऐसे लगता हैं

जैसे 

एक उम्र से, 

एक उम्र तक 

चला हूँ मैं।  

Tuesday, May 06, 2014

तुम्हें भूल तो गया हूँ

तुम्हें भूल तो गया हूँ
लेकिन 
तुम्हारी नज़रों का
टुटा हुआ सिरा 
अब भी कहीं
मेरे मन के
किसी कोने में 
गड़ा हुआ हैं 
जो रह-रह के 
चुभता रहता हैं 
जब कभी हमारी 
आँखें मिलती हैं 

Friday, February 21, 2014

क्यूँ दिल बेक़रार इतना?

क्यूँ दिल बेक़रार इतना?
क्यूँ तेरा इंतज़ार इतना?

टपकती हैं जो आँखों से बूंद बनके 
क्यूँ इनमें प्यार इतना?
आशिक़ी के मंज़िल तक पहुँचने में
क्यूँ इस राह में हार इतना?

क्यूँ दिल बेक़रार इतना?
क्यूँ तेरा इंतज़ार इतना?

शब्दों का ताना-बाना

शब्दों का ताना-बाना
ख्वाबों ने कई बार बुना
मन के कैनवास पर
भावों ने कई रंग चुना 

जागती हुई कहानियों ने
कई बार करबटें बदली
उनमें से किरदारों ने झाँका
जैसे दुल्हन कोई नई नवेली

कुछ अरमानों ने पँख फैलाए
बातों ने ली अंगड़ाई
आँखें मलता हुआ जगा सवेरा
और जागी उम्मीदें खोई-खोई 

Thursday, February 06, 2014

अनंत पे टहल रहे

अनंत पे टहल रहे
बादलों
का रंग लाल क्यूँ हैं?
छाई हैं चारों तरफ
लालिमा
कैसी।
यह क्या, कहीं दूर
आसमान
की एक छोर
पर देखो वो
सूरज
डूबा जा रहा हैं,
और घुला जा रहा हैं
समंदर
की नमकीन पानी में।
शायद,
अब रात दूर नहीं।

Monday, February 03, 2014

मेरी चाहत किस मोड़ पे आ रुकी हैं

मेरी चाहत किस मोड़ पे आ रुकी हैं
तुम सामने हो और मेरी आँखें झुकी हैं
देखूँ तुम्हें तो देखूँ कैसे, कहीं
दिख जाये ना जो हसरतें छुपी हैं

इसलिए मेरी आँखें झुकी हैं
इसलिए मेरी आँखें झुकी हैं

गुम हैं आज हसरतों के जुबां
कुछ अधूरे से जज्बातों की झड़ी हैं
कुछ फासलों का हैं दरमियाँ
कुछ सपनों की आज बेरुखी हैं

इसलिए मेरी आँखें झुकी हैं
इसलिए मेरी आँखें झुकी हैं

धू-धू कर जला था कभी दिल मेरा
तेरी याद में, वो आग कबकी बुझी हैं
लेकिन राख के इस ढ़ेर में
एक हलकी सी चिंगारी अभी भी बची हैं

इसलिए मेरी आँखें झुकी हैं
इसलिए मेरी आँखें झुकी हैं


Friday, December 06, 2013

कैंटीन में आते-जाते

कैंटीन में आते-जाते
कई बार नज़रे मिली थी 
कई बार निगाहों ने निगाहों में 
झाँका था, कुछ तलाशा था 

एक पल के लिए ही सही 
एक चाहत जगी थी कभी 
एक दबी सी चिंगारी इधर 
एक दबी सी चिंगारी उधर 

कई बार तुमने भी 
एक बहाने से 
मेरी तरफ़ देखा था 
कई बार मैंने भी 
उसी बहाने से 
तुम्हारी तरफ देखा था 

कुछ कहा था तुमने ?
क्या कहा था तुमने ?
या वो तुम्हारी आँखे थी,
जो कुछ कह रही थी,
क्या कह रही थी ?

अब इन सवालों
का क्या मतलब।

क्या भूल गया था,
मैं कहीं भटक गया था।
ख्वाबों के बहकावे में 
कुछ दूर निकल गया था।  
जब नींद खुली तो देखा
ना ख्वाब था, ना तुम थी।  



Saturday, October 26, 2013

आवाज़ मेरी तुम तक पहुँचे

आवाज़ मेरी तुम तक पहुँचे 
ऐसी फ़रियाद करता हूँ.
कभी ज्यादा, कभी कम,
तुम्हें हर दम, याद करता हूँ 

मिलोगी तुम किसी मोड़ पे,
तेरा इंतज़ार हर मोड़ के बाद करता हूँ 
कुछ हैं जिंदगी में जो नहीं है,
तेरे सपनों से उस जहाँ को आबाद करता हूँ 


Sunday, December 02, 2012

कशमकश से भरी जिंदगी

कशमकश से भरी जिंदगी
कुछ खोटी, कुछ खरी जिंदगी

कुछ लम्हों से टपकती
कुछ लम्हों की जिंदगी
कुछ लम्हों को समेटती
कुछ लम्हों सी जिंदगी

कुछ लम्हों का पागलपन
कुछ लम्हों का खालीपन
कुछ लम्हों में बदलती
कुछ लम्हों की जिंदगी

कुछ लम्हों का साथ
कुछ लम्हों की बात
कुछ लम्हों में बनती
कुछ लम्हों की जिंदगी 

Friday, September 28, 2012

तेरे होने का जो भ्रम था

तेरे होने का जो भ्रम था, 
तेरे होने से ना कम था।
था भी तो, कम से कम था 
आखिर भ्रम ही था!


Monday, September 17, 2012

जाने वो कैसे आशिक थे

जाने वो कैसे आशिक थे
जो हदों को पार कर गए
आपने आशिकी के लिए

दिल में एक जूनून था
आँखों में क्या जोश था
भुजदंड में लोह प्रवाहित था
आवाज़ में क्या गर्जना थी
जाने वो कैसे आशिक थे।

पागलपन की चरम थे
रक्त प्रवाहित आँखें उनकी,
फिरभी हर वक़्त नम रहती
बिजली की झंकार सी झंकृत
दिल उनका जाने कैसे नर्म रहता

मानवता पर मिटने वाले
हर दिल में बसने वाले
क्या था प्रेम-रहस्य उनका
हाड़-मांस के इस पुतले में
जाने वो कैसा मर्म था
जाने वो कैसे आशिक थे।



कुछ लम्हे पहले, एक लम्हा को हम मिले थे

कुछ लम्हे पहले,
एक लम्हा को हम मिले थे
जाने वो कौन सा लम्हा था
अब याद नहीं
अब तो बस इतना याद हैं
तुमने मुझे देखा था
मैंने तुम्हे देखा था
शायद वो एक पल था
हाँ, वो एक पल ही तो था

दिल में ऐसी कसक उठी थी
जैसे कही बम फटा था
चिथड़े उड़े थे कई मगर
किसने उन्हें देखा था
किसने उन्हें देखा था

शर्म की बोटियाँ उडी थी तब,
बेशर्मी में जब हम दोनों ने,
एक दुसरे को,
उस लम्हे में देखा था।
आग तब भी उतनी उधर थी
आग तब भी उतनी इधर थी
जाने फिरभी,
वो कौन सी दिवार
शर्म की खड़ी थी
कि तुम उस पार खड़ी थी
और मैं इस पर खड़ा था ?

Saturday, August 04, 2012

बड़ी अजीब बात हैं, बातों का ही साथ हैं

बड़ी अजीब बात हैं 
बातों का ही साथ हैं 

मन सोचता बड़ी बात हैं
पर बातों का क्या औकात हैं 

दहक-दहक के जलती रात हैं 
और साथ जलती ये बात हैं 

कि अकेली रात हैं 
कहने को तारों का साथ हैं 

दिल में तन्हाई की विसात हैं 
जंग का आगाज़, जंग की बात हैं 


Friday, June 01, 2012

हदों को कर पार

हदों को कर पार
हदों का क्या इंतज़ार
बन्धनों में नहीं संसार
बंधनों का नहीं संसार

दिखावे पे ना जा
सुन ले दिल की गुहार 
नौका डोल रहीं मझधार
कहाँ खेवैया तेरा, कहाँ पतवार 

सुख का भ्रम देख 
भ्रमित जग-संसार 
खुश रहना भूल गया 
अजब सुख का कारोबार

शांत, आज बेचैन हैं 
बेचैनी बना जीवन-धार
मर मार के जी रहा और 
जीत रहा अपनी हार 


Tuesday, February 07, 2012

हर शाम यूँ ही खो जाती हैं और

हर  शाम  यूँ  ही  खो  जाती  हैं  और 
यूँ  ही  हर  शाम  का  इंतज़ार  रहता  हैं


हर  चेहरे  में  उनका  चेहरा  देख 
यूँ  ही  दिल  ज़ार-ज़ार  रोता  हैं

हर  बहती  हवा  को  रोक-रोक  कर 
यूँ  ही  इस  प्रेम  का  आधार  खोजता  हैं  


हर  नदी  की  बूंद  में  डूब  कर 
यूँ  ही  इस  नदी  की  धार  खोजता  हैं  


इस  जंग  की  जीत  का  कर  बलिदान 
यूँ  ही  खुद  के  लिए  हार  खोजता  हैं

Monday, February 06, 2012

आज फिर दिल परेशान हैं

आज फिर दिल परेशान हैं 
आज फिर आधी सी जान हैं
आज फिर कुछ ख्याल आया
आज फिर  उनका ध्यान हैं

आज फिर जख्म रिस गए
आज फिर अरमान पीस गए
आज फिर बंधनों के दायरे में
कुछ सपने घिस गए

आज फिर शाम आई हैं
आज फिर शाम का इंतज़ार हैं
आज फिर मैं कुछ भूल गया
आज फिर हुआ, जो होता बार-बार हैं

Tuesday, January 24, 2012

जाड़े की ठंडी तपिश हूँ

जाड़े की ठंडी तपिश हूँ
ग्रीष्म की गरम चुभन हूँ
आवाज़ की चिलाती मौन हूँ
मैं कौन हूँ?

दिशा का भ्रमित ठौर हूँ
मन का विचलित शांत हूँ
जीवन का मृतक मौन हूँ
मैं कौन हूँ?

जल की तरलता का ठोस हूँ
भ्रमर का तृप्त प्यास हूँ
आंधी की व्याकुलता मौन हूँ 
मैं कौन हूँ?

Sunday, January 22, 2012

ये कहाँ चले, किन रास्तों पे हम

ये कहाँ चले,
किन रास्तों पे हम
कहाँ ठिकाना,
किस मंजिल के हम
ना उजाले का सहारा
ना अँधेरे के हम
वक़्त रुकता नहीं,
नहीं वक़्त के हम
जमीं थमती नहीं,
नहीं घूमते हम
सबसे परे राही,
बिन रास्तों के हम
   

Thursday, April 21, 2011

संग जीवन-धार के, तैर उस पार रे

संग जीवन-धार के
तैर उस पार रे
तू तेरा पतवार रे
क्यूँ बैठा हार के
राजा, रंक या साहूकार रे
मरना एक बार रे
क्यूँ किनारे बैठ मरता बार-बार रे
यह लड़ाई तेरी लड़ आर-पार रे

मिले हैं दिन चार रे

मिले हैं दिन चार रे
क्यूँ करता तकरार रे
जीवन को मार के
जी रहे हार के
कुछ लम्हे ये उधार के

प्रेम जीवन-आधार रे
प्रेम जीवन-सार रे
प्रेम सूरज-चाँद-तार रे
प्रेम में हार के
कुछ लम्हे ये उधार के

दो बोल, प्यार के
बोल दो प्यार से
बन प्रेम-कुसुम, प्रेम-हार के
जी लो,
कुछ लम्हें ये उधार के
 

Wednesday, April 13, 2011

मंद मंद बहती बयार, अब आंधी बन चली

मंद मंद बहती बयार
अब आंधी बन चली
बन्धनों को कर तार-तार
अब क्रांति बह चली

खोल दो प्रहरी ये द्वार
जन-क्रांति बह चली
ख़त्म होने को भ्रष्टाचार
विश्व-शांति कह चली

ये खेल होगा अब आर-पार
जन-भ्रान्ति हट चली
जन-क्रोध का चढ़ता पारावार
भांति-भांति बढ़ चली

बदलाव के चक्र का प्रहार
अब अंधी बन चली
मिट जायेगा दुराचार
ईश्वर से संधि मन चली

Saturday, March 26, 2011

हैं बसेरा छोटा यहाँ, खत्म होने को समां रे

हैं बसेरा छोटा यहाँ, खत्म होने को समां रे
फिर क्यूँ करता पंछी, तू तिनका जमा रे?
आगे नीला, स्वछंद, खुला आसमां रे
क्यूँ वक़्त जाया कर तिनका जमा रे?

आजाद हैं तू, कर आजादी बयां रे
पल भर का सराया, नहीं तेरा जहाँ रे
तू उड़ने के काबिल, फिर क्यूँ फंसा यहाँ रे?
क्यूँ वक़्त जाया कर तिनका जमा रे?

देख नयन खोल तेरा कौन यहाँ रे
मतलब के लोग, मतलब का जहां रे
खोजता जिस प्रीत को नहीं वो यहाँ रे
क्यूँ वक़्त जाया कर तिनका जमा रे?


Tuesday, March 01, 2011

लम्हा-लम्हा टपक गया

लम्हा-लम्हा टपक गया
यादों के बादल से
गीली हो गई मन की मिट्टी
बातों के दल-दल से
फिसल रहे हैं दिल के कदम
बीते रातों के कल-कल से

Monday, February 28, 2011

हतास भी नहीं थे, निराश भी नहीं थे

हतास भी नहीं थे 
निराश भी नहीं थे
लेकिन जिंदगी के
पास भी नहीं थे  

तृप्त भी नहीं थे
प्यास भी नहीं थे
सपने कुछ
खास भी नहीं थे

आजाद भी नहीं थे
दास भी नहीं थे
अनोखे आश भी नहीं थे

गम भी नहीं थे 
हास भी नहीं थे
क्योकि तुम पास नहीं थे |

Saturday, January 22, 2011

जिंदगी के कुछ पल, बीत गये इस इंतज़ार में

जिंदगी के कुछ पल
बीत गये इस इंतज़ार में
कि कब तुम आओगे,
कि कब तुम आओगे |


कभी सोचा ना था कि
रहूंगी इतना बेक़रार मैं
कि कब तुम आओगे,
कि कब तुम आओगे |

दिल लगता नहीं अपना
अब इस संसार में
कि कब तुम आओगे,
कि कब तुम आओगे |

गहरी नदी हैं सामने,
मैं खड़ा इस पार में
कि कब तुम आओगे,
कि कब तुम आओगे |



तेरी बाते, जो याद आई

तेरी बाते
जो याद आई
तेरी बाते
कुछ अनकाही
तेरी  बाते
भूली हुई बाते
मैंने कभी कही
तेरी बाते
ये बाते
कैसी बाते
तेरी बाते
गूंजी बाते
तेरी बाते

मैं जिस सवेरा को खोजता

मैं जिस सवेरा को खोजता

रहा हर अँधेरे में कहाँ-कहाँ

मालूम ना था कि वो

मिलेगा तुमसे मिलके यहाँ |

वो उड़ते लहराते हुए आसमां

के नीचे इठलाता हुआ बादल,

उसी मस्ती में झूमकर उठता

हुआ एक मस्तमौला नया कल,

के आँगन में मासूम से एक किनारे,

ठिठोली करता हुआ मासूम सा पल |

Saturday, January 01, 2011

हर दिन नया, हर पल नया

हर दिन नया, हर पल नया 

हर सुबह, शाम और कल नया 


हर सोच नया, हर खोज नया 


हर कदम, हर रोज़ नया 

Monday, December 06, 2010

मैं चल पड़ा अपनी सफ़र पे,

मैं चल पड़ा अपनी सफ़र पे,
ले सपनों की गठरी सर पे |

आँखों में भर एक चमक,
चाल में लिए मस्त खनक |
अजनबी दुनिया की गोद में,
मैं बढ चल एक खोज में |
कुछ हैरानी से, कुछ डर से
मैं निकल पड़ा घर से |
दुःख को मैं सहलाता चला,
ठेश को मैं भुलाता चला |



Thursday, December 02, 2010

तेरे इंतज़ार को ख़त्म कर ना सका

तेरे इंतज़ार को ख़त्म कर ना सका,
मैं कभी इश्क कर न सका |
सपनों में हकीकत भर न सका,
मैं कभी इश्क कर न सका |
किसी की आँखों में डूब के मर न सका,
मैं कभी इश्क कर न सका |
उस एहसास में तैर के तर न सका,
मैं कभी इश्क कर न सका |

Sunday, November 28, 2010

अजीब हल-चल हैं

अजीब हल-चल हैं
अजनबी पल हैं

जो साथ आज,
नहीं वो कल हैं

काली रात का
काला दलदल हैं

Saturday, November 13, 2010

आज रोते हुए भी खुश हूँ क्योंकि कल का पता नहीं

आज रोते हुए भी खुश हूँ क्योंकि कल का पता नहीं .
आज तो दर्द भी हैं साथ... कल इसका भी पता नहीं.
मंजिल हैं, राहें हैं, मगर मेरे चाल का पता नहीं .
मेरे कल का पता नहीं .
मेरे आज का पता नहीं.
मेरे कल का पता नहीं.

खोजता हूँ चाँद को उस फलक पे जिसका कोई पता नहीं.
बैठा इस उधेड़बुन में मैं कि कब सवेरा हो पता नहीं .
खुली जो आँखें कभी, हकीकत था या सपना पता नहीं .
मेरे कल का पता नहीं .
मेरे आज का पता नहीं.
मेरे कल का पता नहीं.

दुश्मनी कर ली खुद से जाने कब, पता नहीं .
मिले कोई कहाँ अब जब खुद का ही पता नहीं .

Friday, November 05, 2010

कई बार मैं सोचता हूँ, खुद को खुद में खोजता हूँ

कई बार मैं सोचता हूँ
खुद को खुद में खोजता हूँ |
खो गया मैं कहाँ
हर पल यही सोचता हूँ |
चला था जिस मस्ती में कभी
अब उस मस्ती को खोजता हूँ |
बदरंग नहीं हैं जिंदगी
फिरभी रंग को खोजता हूँ |
खुद को खुद में खोजता हूँ |


पत्ते-पत्ते झडे थे जिस डाली से
उस डाली के वृक्ष को खोजता हूँ |
भरी थी सावन में नदियाँ जिस बारिश से
उसके हर बूंद के बादल को खोजता हूँ |
मैं खुद में खुद को खोजता हूँ |


Tuesday, September 21, 2010

एक मुकम्मल जहाँ की तलाश अधूरी हैं

एक मुकम्मल जहाँ की तलाश अधूरी हैं
हर एक बूंद हो के भी नहीं पूरी हैं|

एक-एक कदम तनहा हैं यहाँ
आशियाँ तो हैं मगर पनाह हैं कहाँ|

गिरे जो हम सपनों की खाई में
कह न सके एक शब्द अपनी सफाई में|

अब तो हम हैं, ये सपने हैं और बची-खुची
ये जिंदगी हकीकत की परछाई में|


  

Monday, June 28, 2010

चलते-चलते दूर कहीं निकल गया हूँ, माँ

चलते-चलते दूर कहीं निकल गया हूँ, माँ
जलते-जलते मोम सा पिघल गया हूँ, माँ
दर्द के कई घुट अब तक निगल गया हूँ, माँ
चिकनी राह में कई बार फिसल गया हूँ, माँ


मैंने ऊपर की पंक्तियाँ लिखी | आगे कुछ नहीं लिख पाया तो मैंने उसे यथावत पोस्ट कर दिया | मेरे प्रिय मित्र पंकज ने इससे बड़ी खूबसूरती के साथ आगे बढाया | नीचे पढ़िए |


चाहे कितना भी दूर निकलू, 
पर हमेशा तेरे पास ही हूँ, माँ 


तेरी याद की ठंडी छाहों में, पिघलने 
के बाद फिर से जम गया हूँ, माँ 


दर्द के हर घूंट को तेरे हाथ का निवाला 
समझ, बड़े प्यार से निगला गया हूँ, माँ 


चिकनी राह पे जब भी फिसला, तेरा 
हाथ पकड़ फिर संभल गया हूँ, माँ 


Saturday, June 19, 2010

जिंदगी बीत जाये रूठे को मनाने में

जिंदगी बीत जाये रूठे को मनाने में
कहीं देखा हैं ऐसा प्यार ज़माने में ?
हम तो नहीं यकीन करते जताने में,
कि क्या रखा हैं प्यार बताने में |


हम सिरफिरे, विश्वास करते कर जाने में,
तैर के जाने में या फिर डूब के मर जाने में |
हौसला बुलंदी चढ़ा हमारा, इश्क के पैमाने में,
मजा ही क्या जो ना टपका छलक जाने में |

Wednesday, June 16, 2010

कई बार चलते-चलते

कई बार चलते-चलते 
                             यूँ ही पलट के देखता हूँ 
एक धुंधली सी तस्वीर 
                             अपने पलक पे देखता हूँ
ढक लिया जिसने जेहन को, 
                             उसे फलक पे देखता हूँ  
सुन्दर इतना हो सकता कैसे कोई 
                             एक ललक से देखता हूँ 
रहता इंतज़ार तबका जब तुम्हारे  
                             एक झलक को देखता हूँ 


कई  बार चलते-चलते 
                             यूँ ही पलट के देखता हूँ 
...
















प्रिये जब तक थे तुम पास मेरे

प्रिये जब तक थे तुम पास मेरे,
मैं तुमसे क्यूँ कुछ ना कह पाया ?
जो दूर गए तब मुझको होश आया
क्यूँ दिल इतना परेशान रहता,
शायद कहना आसान होता |

कोस-कोस कर खुद को मैं
क्या वक़्त को लौटा सकता,
ना ही एक हादसा कह, भुला सकता |
अभी जिन्दा मैं, कभी जिन्दा अरमान होता,
शायद कहना आसान होता |

डरता था तेरे ना से मैं
कैसे तब जी पाता
काश मैं साहस कर पाता
तो मंज़र यह ना सुनसान होता,
शायद कहना आसान होता |

Tuesday, June 15, 2010

ये शब्द ही मुझे अहसास दिलाते कि मैं हूँ

ये शब्द ही मुझे अहसास दिलाते कि मैं हूँ
मुझे समझाते हैं, फुसलाते हैं कि मैं कहूँ |
अक्सर भावहीन रहती हैं मेरी कहानी
होठ चुप ही रहते, मैं कहता कलम की जुबानी |


मेरे सोच को लगा रहता हर वक्त एक खोज,
बुनता रहता नित नए ख्वाब हर रोज |
और हर ढ़लती शाम के साथ खो जाता
जाने कहाँ, किस आसमान में सो जाता |


हर उगते दिन के साथ वो भी जागता
फिर नए जोश और रफ़्तार में भागता |
यही छोटी सी बात थी बतानी
शब्दों का जोड़ यहाँ, कहते मेरी कहानी |

Monday, June 14, 2010

जिंदगी एक खोज हैं अपनी तरह की

जिंदगी एक खोज हैं अपनी तरह की,
अनजाने रास्तों और बेगाने मंजिल की|
दे एक खाली कापी, एक स्याही-दवात
सौप दिया हमें किस्मत के हाथ| 
खुद ही लिख लो अपनी-अपनी कहानी 
अपने शब्द, अपना अर्थ, अपनी जुबानी| 


कुछ खड़े रह गए खोये-खोये से, 
कुछ लिख गए शब्द जागे-सोये से| 
कुछ नया लिखने को उत्प्रेरित हुए, 
और कुछ साहसिक लेखक उद्घोषित हुए| 


हूँ खड़ा कहाँ मैं, 
लगा हूँ यह जाने में| 
एक नहीं मैं, शायद, सब हूँ| 
हैं इंतज़ार रब की सुनू, 
जो रहता मेरे अन्दर हैं 
और कहता बहुत धीरे हैं, 
कि इस जिंदगी के खोज का 
अंत कहाँ और कहाँ सिरे हैं| 

Saturday, June 12, 2010

जिंदगी एक पहेली

जिंदगी एक पहेली, 
                        एक खोज हैं|
जिंदगी एक दर्द, 
                        एक मस्ती-मौज हैं|
जिंदगी एक कहानी, 
                        एक सोच हैं|
जिंदगी एक जंग, 
                        हर-रोज़ हैं|

Friday, June 11, 2010

हूँ लिख-लिख के सब भूल गया

हूँ लिख-लिख के सब भूल गया
मैं क्या छोड़ा, क्या याद किया |


शब्दों के बीच खो गया, जाने 
कब, तुम से फरियाद किया |


अब मिट गया वो दर्द जो कभी 
दिल को मेरे आबाद किया |


जी रहा हूँ संग अपने, देखो,
सूनेपन को बर्बाद किया |


करना था जो पहले मुझको,  
क्यूँ सब करने के बाद किया ?


क्या याद किया, क्या फ़रियाद किया
क्यूँ सब करने के बाद किया ?

Thursday, June 10, 2010

हजारों ख्वाहिशें ऐसी...3

ले लूँ तपिश धरती की, 
मैं फैला दूँ शितलता,
निकाल द्वेष ह्रदय से,
मैं भर सकूँ निर्मलता 
हे नाथ, क्या यह
लगती मुमकिन सी?


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी|


प्रेम करना
इतना मुश्किल,
जल रहा 
सबका दिल,
बन सावन फुहार
मैं बरसू झड़ी सी |


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी|


Friday, June 04, 2010

हजारों ख्वाहिशें ऐसी...2

ख्वाबों के पंख इस जहाँ,
उस जहाँ के होते|
उड़ान उसकी बेपरवाह,
आसमां के होते|
उड़ जाऊं मैं, हवाओं में,
ख्वाब-पंख फेलाए चिड़िया सी|


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी|


हैं शर्द मौसम,
गर्म कभी|
हैं जकड़न तो,
नर्म कभी|
तुषार हूँ, तपिश हूँ
मैं ओजस्वी|


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी|


बूंद एक आँखों से
कहते दिल का मर्म,
अदृश्य बूंद दिल के,
प्रेम, नफरत, घृणा या शर्म|
ना इन जैसी हूँ, 
मैं एक बूंद ओस की|


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी|

Wednesday, June 02, 2010

हजारों ख्वाहिशें ऐसी...1

बहती धरा पे छम-छम 
झूम के चलूँ मैं,
ऊपर आसमान से 
इठला के कहूँ मैं,
क्या आजादी तुम्हें, 
मिली हैं मुझ जैसी?


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी |


भँवरा जो भ्रमण
करता कुसुम का,
पान करता रस 
बन मासूम सा,
बन जाऊँ वो भ्रमर
मैं, हैं इक्छा ऐसी|


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी |


बदली जो घिरती सावन 
में, गाती राग मलार,
तृप्त हो गई धरती मानों,
ग्रीष्म की मनाए हार |
मुकुट-विजयी पहना के, 
नाचूँ धरा संग, बन रूपसि |


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी |


मेरा परिचय

भगवान हूँ,
शैतान हूँ,
तुम्हारी संतान हूँ, 
जग, कर मेरी जय| 
मेरा परिचय|


पाषाण हूँ,
परेशान हूँ,
आखिर इंसान हूँ|
लगता मुझको भय|
मेरा परिचय|


वरिष्ठ हूँ,
बलिष्ठ हूँ,
मैं कर्मनिष्ठ हूँ|
उर मेरा तेज़मय|
मेरा परिचय| 


आक्रांत हूँ,
शांत हूँ,
क्यूँ भ्रांत हूँ?
नहीं कोई आश्रय|
मेरा परिचय|


प्रेम हूँ,
नर्म हूँ,
शीतल कभी, गर्म हूँ|
ऐसा मैं अज्ञेय|  
मेरा परिचय|

क्या कहता हैं मेरा दिल

क्या कहता हैं मेरा दिल


क्यूँ हूँ शब्दों में शामिल ?
लिख लिख के क्या हासिल
कहीं और जाना, नहीं यह मंजिल
रस्ते जो मिलते, थोड़े मुश्किल
खुद ही सहारा, खुद ही कातिल
बस लहरों का संग, दूर साहिल.


डर मत पगले, अनजानों से मिल
उपवन का फूल तू, खुल के खिल
भर विश्वास उर में, अपनी किस्मत सिल
बन जा विशाल, जोड़ सपनों का तिल 
ये नहीं मुश्किल, ये नहीं मुश्किल,
बस, यहीं कहता मेरा दिल |

पहचान, खो गया कहीं

पहचान,
खो गया कहीं
इस भीड़ में|
साथ था,
पर अब नहीं|


पहचान,
जिसे सम्हाला, 
युगों से मैं,
एक पल में 
खो डाला|


पहचान,
गया कहाँ
न समझ पाया|
चौकन्ना था पर,
अब कहाँ |


पहचान,
अब बनाऊ कैसे,
गलती कहाँ,
खोजूं कहाँ 
और कैसे ?

Tuesday, June 01, 2010

कविता

कविता,
एक चिंतन,
              एक मंथन,
एक आगाज़,
              एक परिवर्तन,
एक सोच,
               एक खोज़,
एक भवर,
               एक भ्रमर,
एक क्रंदन,
              एक स्पंदन,
एक परिचय,
             एक पर-जय,
 एक दुहिता,
             एक परिणीता,
एक उल्लास,
            एक त्रास,
शायद,
           एक प्रेम,
या सिर्फ 
            एक भ्रम ?

कई बार गम में भी, कम ही सही, जीने की एक वजह खोजते

कई बार गम में भी, कम ही सही,
जीने की एक वजह खोजते
और,
कई बार खो जाते खुशियों की
भीड़ में, खुद को ही खोजते-खोजते |


कई बार मकसद-विहीन
हो के भी लीन रहते
और,
कई बार पास रह के
भी मंजिल नहीं पाते |


कई बार अपनों के बीच
भी, अपने खो जाते 
और,
कई बार बेगानों से निकल
आते जन्मों के नाते |


कई बार बातों में भी
शुकून नहीं मिलता
और,
कई बार बीन कहे ही
मन हैं खिलता |


कई बार सब मिलके
भी कुछ नहीं मिलता
और,
कई बार सब खो के भी
हम क्या नहीं पाते !

Saturday, May 29, 2010

दर्द के बिना क्या ये जिंदगी अधूरी हैं?

दर्द के बिना क्या ये जिंदगी अधूरी हैं?
क्या ह्रदय-अवसाद का रिसना जरुरी हैं?
मातम मनाते रहे क्यूँ हर पल यहाँ,
क्या अविरत रोना हमारी मज़बूरी हैं?


विषाद ही मिला हैं अब तक चलते-चलते,
क्या संगिनी प्रियतम-प्रेरणा माधुरी हैं?
रिस गया हैं लहू जिस्म से सारा,
क्या प्राण-रस-बिन जिंदगी दुलारी हैं?


कंटकों के शर जो चुभ रहें हैं पाँव में
क्या तन मेरा हिम-स्थूल हिमाद्री हैं?
विस्मित हूँ, विरह-वेदना के घाव हरे हैं,
क्या नियति-नियोग, निश्चल-प्रेम पे भारी हैं?


पथरीले नयन, थके कदम, हतास मन
क्या यह विचिलित-व्यक्तित्व हमारी हैं!
जमे रक्त-संचार, जकड़ी नसें, मद्धम ह्रदय-गति 
क्या यह विकराल-काल यम की आरी हैं? 


यह क्या! अनायास ही बह चली
यह कैसी अमृतरस-कुसुम की बयारी हैं!
क्या मैं हूँ मरुस्थली-धरा पे या
हे देव, यह पावन-उपवन तुम्हारी हैं? 

कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...