Friday, June 01, 2012

हदों को कर पार

हदों को कर पार
हदों का क्या इंतज़ार
बन्धनों में नहीं संसार
बंधनों का नहीं संसार

दिखावे पे ना जा
सुन ले दिल की गुहार 
नौका डोल रहीं मझधार
कहाँ खेवैया तेरा, कहाँ पतवार 

सुख का भ्रम देख 
भ्रमित जग-संसार 
खुश रहना भूल गया 
अजब सुख का कारोबार

शांत, आज बेचैन हैं 
बेचैनी बना जीवन-धार
मर मार के जी रहा और 
जीत रहा अपनी हार 


कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...