हदों को कर पार
हदों का क्या इंतज़ार
बन्धनों में नहीं संसार
बंधनों का नहीं संसार
दिखावे पे ना जा
सुन ले दिल की गुहार
नौका डोल रहीं मझधार
कहाँ खेवैया तेरा, कहाँ पतवार
सुख का भ्रम देख
भ्रमित जग-संसार
खुश रहना भूल गया
अजब सुख का कारोबार
शांत, आज बेचैन हैं
बेचैनी बना जीवन-धार
मर मार के जी रहा और
जीत रहा अपनी हार