Sunday, December 02, 2012

कशमकश से भरी जिंदगी

कशमकश से भरी जिंदगी
कुछ खोटी, कुछ खरी जिंदगी

कुछ लम्हों से टपकती
कुछ लम्हों की जिंदगी
कुछ लम्हों को समेटती
कुछ लम्हों सी जिंदगी

कुछ लम्हों का पागलपन
कुछ लम्हों का खालीपन
कुछ लम्हों में बदलती
कुछ लम्हों की जिंदगी

कुछ लम्हों का साथ
कुछ लम्हों की बात
कुछ लम्हों में बनती
कुछ लम्हों की जिंदगी 

Friday, September 28, 2012

तेरे होने का जो भ्रम था

तेरे होने का जो भ्रम था, 
तेरे होने से ना कम था।
था भी तो, कम से कम था 
आखिर भ्रम ही था!


Monday, September 17, 2012

जाने वो कैसे आशिक थे

जाने वो कैसे आशिक थे
जो हदों को पार कर गए
आपने आशिकी के लिए

दिल में एक जूनून था
आँखों में क्या जोश था
भुजदंड में लोह प्रवाहित था
आवाज़ में क्या गर्जना थी
जाने वो कैसे आशिक थे।

पागलपन की चरम थे
रक्त प्रवाहित आँखें उनकी,
फिरभी हर वक़्त नम रहती
बिजली की झंकार सी झंकृत
दिल उनका जाने कैसे नर्म रहता

मानवता पर मिटने वाले
हर दिल में बसने वाले
क्या था प्रेम-रहस्य उनका
हाड़-मांस के इस पुतले में
जाने वो कैसा मर्म था
जाने वो कैसे आशिक थे।



कुछ लम्हे पहले, एक लम्हा को हम मिले थे

कुछ लम्हे पहले,
एक लम्हा को हम मिले थे
जाने वो कौन सा लम्हा था
अब याद नहीं
अब तो बस इतना याद हैं
तुमने मुझे देखा था
मैंने तुम्हे देखा था
शायद वो एक पल था
हाँ, वो एक पल ही तो था

दिल में ऐसी कसक उठी थी
जैसे कही बम फटा था
चिथड़े उड़े थे कई मगर
किसने उन्हें देखा था
किसने उन्हें देखा था

शर्म की बोटियाँ उडी थी तब,
बेशर्मी में जब हम दोनों ने,
एक दुसरे को,
उस लम्हे में देखा था।
आग तब भी उतनी उधर थी
आग तब भी उतनी इधर थी
जाने फिरभी,
वो कौन सी दिवार
शर्म की खड़ी थी
कि तुम उस पार खड़ी थी
और मैं इस पर खड़ा था ?

Saturday, August 04, 2012

बड़ी अजीब बात हैं, बातों का ही साथ हैं

बड़ी अजीब बात हैं 
बातों का ही साथ हैं 

मन सोचता बड़ी बात हैं
पर बातों का क्या औकात हैं 

दहक-दहक के जलती रात हैं 
और साथ जलती ये बात हैं 

कि अकेली रात हैं 
कहने को तारों का साथ हैं 

दिल में तन्हाई की विसात हैं 
जंग का आगाज़, जंग की बात हैं 


Friday, June 01, 2012

हदों को कर पार

हदों को कर पार
हदों का क्या इंतज़ार
बन्धनों में नहीं संसार
बंधनों का नहीं संसार

दिखावे पे ना जा
सुन ले दिल की गुहार 
नौका डोल रहीं मझधार
कहाँ खेवैया तेरा, कहाँ पतवार 

सुख का भ्रम देख 
भ्रमित जग-संसार 
खुश रहना भूल गया 
अजब सुख का कारोबार

शांत, आज बेचैन हैं 
बेचैनी बना जीवन-धार
मर मार के जी रहा और 
जीत रहा अपनी हार 


Tuesday, February 07, 2012

हर शाम यूँ ही खो जाती हैं और

हर  शाम  यूँ  ही  खो  जाती  हैं  और 
यूँ  ही  हर  शाम  का  इंतज़ार  रहता  हैं


हर  चेहरे  में  उनका  चेहरा  देख 
यूँ  ही  दिल  ज़ार-ज़ार  रोता  हैं

हर  बहती  हवा  को  रोक-रोक  कर 
यूँ  ही  इस  प्रेम  का  आधार  खोजता  हैं  


हर  नदी  की  बूंद  में  डूब  कर 
यूँ  ही  इस  नदी  की  धार  खोजता  हैं  


इस  जंग  की  जीत  का  कर  बलिदान 
यूँ  ही  खुद  के  लिए  हार  खोजता  हैं

Monday, February 06, 2012

आज फिर दिल परेशान हैं

आज फिर दिल परेशान हैं 
आज फिर आधी सी जान हैं
आज फिर कुछ ख्याल आया
आज फिर  उनका ध्यान हैं

आज फिर जख्म रिस गए
आज फिर अरमान पीस गए
आज फिर बंधनों के दायरे में
कुछ सपने घिस गए

आज फिर शाम आई हैं
आज फिर शाम का इंतज़ार हैं
आज फिर मैं कुछ भूल गया
आज फिर हुआ, जो होता बार-बार हैं

Tuesday, January 24, 2012

जाड़े की ठंडी तपिश हूँ

जाड़े की ठंडी तपिश हूँ
ग्रीष्म की गरम चुभन हूँ
आवाज़ की चिलाती मौन हूँ
मैं कौन हूँ?

दिशा का भ्रमित ठौर हूँ
मन का विचलित शांत हूँ
जीवन का मृतक मौन हूँ
मैं कौन हूँ?

जल की तरलता का ठोस हूँ
भ्रमर का तृप्त प्यास हूँ
आंधी की व्याकुलता मौन हूँ 
मैं कौन हूँ?

Sunday, January 22, 2012

ये कहाँ चले, किन रास्तों पे हम

ये कहाँ चले,
किन रास्तों पे हम
कहाँ ठिकाना,
किस मंजिल के हम
ना उजाले का सहारा
ना अँधेरे के हम
वक़्त रुकता नहीं,
नहीं वक़्त के हम
जमीं थमती नहीं,
नहीं घूमते हम
सबसे परे राही,
बिन रास्तों के हम
   

कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...