Tuesday, January 24, 2012

जाड़े की ठंडी तपिश हूँ

जाड़े की ठंडी तपिश हूँ
ग्रीष्म की गरम चुभन हूँ
आवाज़ की चिलाती मौन हूँ
मैं कौन हूँ?

दिशा का भ्रमित ठौर हूँ
मन का विचलित शांत हूँ
जीवन का मृतक मौन हूँ
मैं कौन हूँ?

जल की तरलता का ठोस हूँ
भ्रमर का तृप्त प्यास हूँ
आंधी की व्याकुलता मौन हूँ 
मैं कौन हूँ?

Sunday, January 22, 2012

ये कहाँ चले, किन रास्तों पे हम

ये कहाँ चले,
किन रास्तों पे हम
कहाँ ठिकाना,
किस मंजिल के हम
ना उजाले का सहारा
ना अँधेरे के हम
वक़्त रुकता नहीं,
नहीं वक़्त के हम
जमीं थमती नहीं,
नहीं घूमते हम
सबसे परे राही,
बिन रास्तों के हम
   

कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...