कभी रगों के लहू से टपकी,
तो कभी बदन के पसीने से।
कभी थरथराते होटों से,
तो कभी धधकते सीने से।
टपकी है हर बार,
आजादी,
यहाँ घुट-घुट के जीने से।
मैं आजाद हूँ... क्या ?
तो कभी बदन के पसीने से।
कभी थरथराते होटों से,
तो कभी धधकते सीने से।
टपकी है हर बार,
आजादी,
यहाँ घुट-घुट के जीने से।
मैं आजाद हूँ... क्या ?
2 comments:
Nice poem. I really like your poem. Thanks for sharing. I work in Car towing service company. If you any need about towing service contact me.
बहुत बढ़िया, अत्ति सुंदर ! जारी रखे ! Horror Stories
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