Tuesday, August 16, 2016

कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी,
तो कभी बदन के पसीने से।
कभी थरथराते होटों से,
तो कभी धधकते सीने से। 
टपकी है हर बार,
आजादी,
यहाँ घुट-घुट के जीने से।


मैं आजाद हूँ... क्या ?

2 comments:

Unknown said...

Nice poem. I really like your poem. Thanks for sharing. I work in Car towing service company. If you any need about towing service contact me.

lokhindi said...

बहुत बढ़िया, अत्ति सुंदर ! जारी रखे ! Horror Stories

कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...