Tuesday, February 07, 2012

हर शाम यूँ ही खो जाती हैं और

हर  शाम  यूँ  ही  खो  जाती  हैं  और 
यूँ  ही  हर  शाम  का  इंतज़ार  रहता  हैं


हर  चेहरे  में  उनका  चेहरा  देख 
यूँ  ही  दिल  ज़ार-ज़ार  रोता  हैं

हर  बहती  हवा  को  रोक-रोक  कर 
यूँ  ही  इस  प्रेम  का  आधार  खोजता  हैं  


हर  नदी  की  बूंद  में  डूब  कर 
यूँ  ही  इस  नदी  की  धार  खोजता  हैं  


इस  जंग  की  जीत  का  कर  बलिदान 
यूँ  ही  खुद  के  लिए  हार  खोजता  हैं

Monday, February 06, 2012

आज फिर दिल परेशान हैं

आज फिर दिल परेशान हैं 
आज फिर आधी सी जान हैं
आज फिर कुछ ख्याल आया
आज फिर  उनका ध्यान हैं

आज फिर जख्म रिस गए
आज फिर अरमान पीस गए
आज फिर बंधनों के दायरे में
कुछ सपने घिस गए

आज फिर शाम आई हैं
आज फिर शाम का इंतज़ार हैं
आज फिर मैं कुछ भूल गया
आज फिर हुआ, जो होता बार-बार हैं

कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...