कई बार चलते-चलते
यूँ ही पलट के देखता हूँ
एक धुंधली सी तस्वीर
अपने पलक पे देखता हूँ
ढक लिया जिसने जेहन को,
उसे फलक पे देखता हूँ
सुन्दर इतना हो सकता कैसे कोई
एक ललक से देखता हूँ
रहता इंतज़ार तबका जब तुम्हारे
एक झलक को देखता हूँ
कई बार चलते-चलते
यूँ ही पलट के देखता हूँ
...
यूँ ही पलट के देखता हूँ
एक धुंधली सी तस्वीर
अपने पलक पे देखता हूँ
ढक लिया जिसने जेहन को,
उसे फलक पे देखता हूँ
सुन्दर इतना हो सकता कैसे कोई
एक ललक से देखता हूँ
रहता इंतज़ार तबका जब तुम्हारे
एक झलक को देखता हूँ
कई बार चलते-चलते
यूँ ही पलट के देखता हूँ
...
4 comments:
kai baar chalate -2 yun hi
palat ke dekhata hu
is rah pe tu najar aaj aayegi
yahi soch kar har raah ko lalach dekhata hu
kisi raah pe tumhe na paya to
aasman ko thak ke dekhata hu..
kai baar chalate -2 yun hi
palat ke dekhata hu
khubsoorat.... :)
Kya Baat Hai!
aapki kavita ko bar bar padhne ka man kiyaa...bahut achchha likha hai apne.....keep blogging
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