Wednesday, June 16, 2010

प्रिये जब तक थे तुम पास मेरे

प्रिये जब तक थे तुम पास मेरे,
मैं तुमसे क्यूँ कुछ ना कह पाया ?
जो दूर गए तब मुझको होश आया
क्यूँ दिल इतना परेशान रहता,
शायद कहना आसान होता |

कोस-कोस कर खुद को मैं
क्या वक़्त को लौटा सकता,
ना ही एक हादसा कह, भुला सकता |
अभी जिन्दा मैं, कभी जिन्दा अरमान होता,
शायद कहना आसान होता |

डरता था तेरे ना से मैं
कैसे तब जी पाता
काश मैं साहस कर पाता
तो मंज़र यह ना सुनसान होता,
शायद कहना आसान होता |

1 comment:

Anamikaghatak said...

bhav vyanjana achchhi hai

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