Thursday, June 10, 2010

हजारों ख्वाहिशें ऐसी...3

ले लूँ तपिश धरती की, 
मैं फैला दूँ शितलता,
निकाल द्वेष ह्रदय से,
मैं भर सकूँ निर्मलता 
हे नाथ, क्या यह
लगती मुमकिन सी?


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी|


प्रेम करना
इतना मुश्किल,
जल रहा 
सबका दिल,
बन सावन फुहार
मैं बरसू झड़ी सी |


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी|


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