Tuesday, June 01, 2010

कई बार गम में भी, कम ही सही, जीने की एक वजह खोजते

कई बार गम में भी, कम ही सही,
जीने की एक वजह खोजते
और,
कई बार खो जाते खुशियों की
भीड़ में, खुद को ही खोजते-खोजते |


कई बार मकसद-विहीन
हो के भी लीन रहते
और,
कई बार पास रह के
भी मंजिल नहीं पाते |


कई बार अपनों के बीच
भी, अपने खो जाते 
और,
कई बार बेगानों से निकल
आते जन्मों के नाते |


कई बार बातों में भी
शुकून नहीं मिलता
और,
कई बार बीन कहे ही
मन हैं खिलता |


कई बार सब मिलके
भी कुछ नहीं मिलता
और,
कई बार सब खो के भी
हम क्या नहीं पाते !

3 comments:

Ankur said...

kya hua baba...aajkal full time poet ban gaye hai???

SATYAKAM said...

Ankur babu... Kuch na kuch to karte rahna chahiye na...
Aapne ye to kaha hi nahi ki kaisi lagi ye "kavitaye"?

संजय भास्‍कर said...

काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर

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