Monday, October 27, 2014

ओस की चादर ओढ़े

ओस की चादर ओढ़े हुए
देखो हरियाली अपने
ख्वाबों की समंदर
में डूबी जा रही हैं
बादलों के पीछे से
झांकता हुआ सूरज
मानो शर्माते हुए
कह रहा हैं-
देखो मैं आ गया,
अब तो आँखें खोलो

अंगड़ाई लेती हुई हरियाली
मंद-मंद शीतल बहती हुई
हवा के हाथों से
ओस के चादर को
अपने सिर तक खींचती हैं
और
करबट बदल के फिर सो जाती हैं

Friday, October 24, 2014

टूटे हुए रिस्ते के धागों

टूटे हुए रिस्ते के धागों
को जोड़ने चला हूँ
मैं फिर से मरने चला हूँ,
मैं फिर से जीने चला हूँ

ख़ुद के क़दमों की आहटों
से डर जाता था कभी
आज फिर दूसरों की
आहटों को सुनने चला हूँ

मैं फिर से जीने चला हूँ

मुस्कुराहटों के पीछे न जाने
कब से ख़ामोशी रोती रहीं
आज खामोश रहते हुए भी
मैं हँसने चला हूँ

मैं फिर से जीने चला हूँ



Sunday, October 12, 2014

दिल में जो दस्तक तेरा 

दिल में जो दस्तक तेरा

वो हैं मेहबूब मेरा 

हाथ उठा के क्या करूँ इबादत 

और सर झुका के क्या सजदा 

जब मुझे में तू हैं, तुझमें मैं

फिर बंदा कौन, कौन हैं ख़ुदा 

Friday, October 10, 2014

कुछ ही दूर

कुछ ही दूर,

और

कुछ ही देर 

तो चला हूँ मैं।

लेकिन 

ऐसे लगता हैं

जैसे 

एक उम्र से, 

एक उम्र तक 

चला हूँ मैं।  

कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...