Friday, October 24, 2014

टूटे हुए रिस्ते के धागों

टूटे हुए रिस्ते के धागों
को जोड़ने चला हूँ
मैं फिर से मरने चला हूँ,
मैं फिर से जीने चला हूँ

ख़ुद के क़दमों की आहटों
से डर जाता था कभी
आज फिर दूसरों की
आहटों को सुनने चला हूँ

मैं फिर से जीने चला हूँ

मुस्कुराहटों के पीछे न जाने
कब से ख़ामोशी रोती रहीं
आज खामोश रहते हुए भी
मैं हँसने चला हूँ

मैं फिर से जीने चला हूँ



1 comment:

nikunj kumar said...

बहुत सही

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