Sunday, August 17, 2008

रात का आलिंगन कर, जब आई एक नई सुबह

रात का आलिंगन कर
जब आई एक नई सुबह |

हर ओर उजाला फैलाती ,
लेकर किरण आई एक नई सुबह |

अचानक ही चहकने लगा जीवन
सुर में गाती आई एक नई सुबह |

डर और विस्मय को दे विराम
रगों में ऊर्जा भरने आई एक नई सुबह |

रुके हुए थे जो कदम, नई राह
को लेकर आई एक नई सुबह |

बढता जा रे पथिक, अविरत
तुझे लेने आई एक नई सुबह |

Thursday, August 14, 2008

जहान्वी, मैं आज तुम्हारी नजरों से देख रहा हूँ

आज, मैं तुम्हारी नजरों से, दुनिया देख रहा हूँ

ग़म कैसा, कुछ नहीं से,
बहुत कुछ देख रहा हूँ.
कल तक बढ़ता ही जा रहा था
जिंदगी में, आज थम के देख रहा हूँ.
खुशियों की मुस्कान तो देखी नहीं, पर हाँ,
आज ग़म की आँसुओं को देख रहा हूँ.
जहान्वी, मैं आज तुम्हारी नजरों से देख रहा हूँ

बदलते इंसानी फितरत को
अपने जेहन में देख रहा हूँ
अपनों से बेगाने होते लोगों को
अपने आँगन में देख रहा हूँ.
अपनाया किसे नहीं मैंने अपना कह के,
और वक्त पे मुकरते हुए अपनों को देख रहा हूँ.
जहान्वी, मैं आज तुम्हारी नजरों से देख रहा हूँ

ठहरे हुए पानी में उठते हुए
हलचल को देख रहा हूँ.
जगती आंखों से, सोते हुए
पल को देख रहा हूँ.
लिपटे हुए कफ़न में
जिन्दा हसरतो को देख रहा हूँ.
जहान्वी, मैं आज तुम्हारी नजरों से देख रहा हूँ

कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...