शब्द

खुद के बारे में हम क्या कहे | शब्द तो कई हैं शब्दकोष में मगर सही शब्दों का चयन कर के अपने बारे में चंद शब्द कहना हमारे लिए कल भी मुश्किल था, आज भी मुश्किल हैं और शायद आने वाले कल में भी मुश्किल रहेगा |
बड़े-बुजुर्गों को कहते सुना हैं कि जिंदगी निकल जाती हैं जिंदगी को समझने में, तब भी शायद ही समझ पाते हैं | हमारी समझदारी उतनी कहाँ |
कुछ शब्दों को आड़े-तिरछे जोड़ कर सजीव भाव देने की एक कोशिश मात्र हैं यह | शायद, ये शब्दों की माला ही हमारे चरित्र का सहीं चित्रण कर सके |

कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...