Tuesday, May 06, 2014

तुम्हें भूल तो गया हूँ

तुम्हें भूल तो गया हूँ
लेकिन 
तुम्हारी नज़रों का
टुटा हुआ सिरा 
अब भी कहीं
मेरे मन के
किसी कोने में 
गड़ा हुआ हैं 
जो रह-रह के 
चुभता रहता हैं 
जब कभी हमारी 
आँखें मिलती हैं 

कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...