Saturday, June 07, 2008

दूर तक जाते रास्तों पर

दूर तक जाते रास्तों पर
मैं दूर तक चला.
मिले पड़ाव कई मगर
ठिकाना एक न मिला.

बस अब नहीं, हर बार यह
सोच, एक कदम और चला.
जब मुड़ के देखा तब दिखा,
कि मैं तो मीलों चला.

अब रुकना व्यर्थ हैं
पर लगता चलना भला.
न हैं ठिकाना तो क्या
एक पड़ाव तो हर बार मिला.

थोडा रुक लिया, थोडा थम लिया
फिर नए जोश से आगे को चला
पथ दिखें कई, कई बार नहीं
विश्वास दृढ कर हर बार चला

ठेस लगी, गीरा भी कभी
दर्द हुआ, सब सहता चला
काँटों के शर मिले, पर
फूलों का सेज भी मिला

यात्रा का आनंद इसमें सुख-दुःख
धुप-छाव संग, मैं चला.
कह गए है बुजुर्ग, जो
अंत भला तो सब भला.

7 comments:

Unknown said...

Ruk jana nahi tu kahi harke...kato pe chalke milenge saye bahar ke..this is wat the moral of your outstanding poem..good one..you are excelling day by day..keep it up;-)

AnAnT said...

Hemz has said it all.... :)
mast hai satyakam baba.... keep it up... gr8 going...

Anonymous said...

very well written.. nice rhythm .. keep it up!!!

KD 007 said...

better than before..u getting polished day by day...sorry for this but instead of "par lagta chalna bhala" shud not it be " aur lagta chalna bhala"
no offence meant

looking for some great ones

SATYAKAM said...

thanks Hemz, Ananth, Tanu, and KD..
KD:- Even I thought about "aur lagta chalna bhala" but some how did not like that sentence... BTW, once more thanks for commenting and giveing ur honest and most sought for feedback...

~Satya

Unknown said...

mast likha hai bhaiya....

Aarushi said...

Nice one...

Chaltae chaltae raho pae..kadam thak jab jatae hae...
ek ummid dil kae konae sae aawaz dae
bulati hae...
rukna kyu jab zindgi chal rehi hae...
her raah pae jeet nahi per ek seekh tou zindgi deti hae..

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