देखता हूँ जब भी दुनिया को,
ख़ुद को खड़ा पाता हूँ.
दौड़ते भागते लोगों के बीच
पता नहीं, ख़ुद को कहाँ पाता हूँ?
हर रास्ते की हैं एक मंजिल, जानता हूँ
फिरभी ख़ुद को चौराहे पर, खड़ा पाता हूँ.
अपनों के बीच भी
ख़ुद को तनहा पाता हूँ.
सिफारिश करूँ अपनी खुशियों की
किससे, नहीं वो खुदा पाता हूँ.
बढ़ रहा हूँ मंजिल की ओर,
पर किधर, नहीं वो रास्ता पाता हूँ.
ख़ुद को खड़ा पाता हूँ.
दौड़ते भागते लोगों के बीच
पता नहीं, ख़ुद को कहाँ पाता हूँ?
हर रास्ते की हैं एक मंजिल, जानता हूँ
फिरभी ख़ुद को चौराहे पर, खड़ा पाता हूँ.
अपनों के बीच भी
ख़ुद को तनहा पाता हूँ.
सिफारिश करूँ अपनी खुशियों की
किससे, नहीं वो खुदा पाता हूँ.
बढ़ रहा हूँ मंजिल की ओर,
पर किधर, नहीं वो रास्ता पाता हूँ.
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