Monday, June 28, 2010

चलते-चलते दूर कहीं निकल गया हूँ, माँ

चलते-चलते दूर कहीं निकल गया हूँ, माँ
जलते-जलते मोम सा पिघल गया हूँ, माँ
दर्द के कई घुट अब तक निगल गया हूँ, माँ
चिकनी राह में कई बार फिसल गया हूँ, माँ


मैंने ऊपर की पंक्तियाँ लिखी | आगे कुछ नहीं लिख पाया तो मैंने उसे यथावत पोस्ट कर दिया | मेरे प्रिय मित्र पंकज ने इससे बड़ी खूबसूरती के साथ आगे बढाया | नीचे पढ़िए |


चाहे कितना भी दूर निकलू, 
पर हमेशा तेरे पास ही हूँ, माँ 


तेरी याद की ठंडी छाहों में, पिघलने 
के बाद फिर से जम गया हूँ, माँ 


दर्द के हर घूंट को तेरे हाथ का निवाला 
समझ, बड़े प्यार से निगला गया हूँ, माँ 


चिकनी राह पे जब भी फिसला, तेरा 
हाथ पकड़ फिर संभल गया हूँ, माँ 


Saturday, June 19, 2010

जिंदगी बीत जाये रूठे को मनाने में

जिंदगी बीत जाये रूठे को मनाने में
कहीं देखा हैं ऐसा प्यार ज़माने में ?
हम तो नहीं यकीन करते जताने में,
कि क्या रखा हैं प्यार बताने में |


हम सिरफिरे, विश्वास करते कर जाने में,
तैर के जाने में या फिर डूब के मर जाने में |
हौसला बुलंदी चढ़ा हमारा, इश्क के पैमाने में,
मजा ही क्या जो ना टपका छलक जाने में |

Wednesday, June 16, 2010

कई बार चलते-चलते

कई बार चलते-चलते 
                             यूँ ही पलट के देखता हूँ 
एक धुंधली सी तस्वीर 
                             अपने पलक पे देखता हूँ
ढक लिया जिसने जेहन को, 
                             उसे फलक पे देखता हूँ  
सुन्दर इतना हो सकता कैसे कोई 
                             एक ललक से देखता हूँ 
रहता इंतज़ार तबका जब तुम्हारे  
                             एक झलक को देखता हूँ 


कई  बार चलते-चलते 
                             यूँ ही पलट के देखता हूँ 
...
















प्रिये जब तक थे तुम पास मेरे

प्रिये जब तक थे तुम पास मेरे,
मैं तुमसे क्यूँ कुछ ना कह पाया ?
जो दूर गए तब मुझको होश आया
क्यूँ दिल इतना परेशान रहता,
शायद कहना आसान होता |

कोस-कोस कर खुद को मैं
क्या वक़्त को लौटा सकता,
ना ही एक हादसा कह, भुला सकता |
अभी जिन्दा मैं, कभी जिन्दा अरमान होता,
शायद कहना आसान होता |

डरता था तेरे ना से मैं
कैसे तब जी पाता
काश मैं साहस कर पाता
तो मंज़र यह ना सुनसान होता,
शायद कहना आसान होता |

Tuesday, June 15, 2010

ये शब्द ही मुझे अहसास दिलाते कि मैं हूँ

ये शब्द ही मुझे अहसास दिलाते कि मैं हूँ
मुझे समझाते हैं, फुसलाते हैं कि मैं कहूँ |
अक्सर भावहीन रहती हैं मेरी कहानी
होठ चुप ही रहते, मैं कहता कलम की जुबानी |


मेरे सोच को लगा रहता हर वक्त एक खोज,
बुनता रहता नित नए ख्वाब हर रोज |
और हर ढ़लती शाम के साथ खो जाता
जाने कहाँ, किस आसमान में सो जाता |


हर उगते दिन के साथ वो भी जागता
फिर नए जोश और रफ़्तार में भागता |
यही छोटी सी बात थी बतानी
शब्दों का जोड़ यहाँ, कहते मेरी कहानी |

Monday, June 14, 2010

जिंदगी एक खोज हैं अपनी तरह की

जिंदगी एक खोज हैं अपनी तरह की,
अनजाने रास्तों और बेगाने मंजिल की|
दे एक खाली कापी, एक स्याही-दवात
सौप दिया हमें किस्मत के हाथ| 
खुद ही लिख लो अपनी-अपनी कहानी 
अपने शब्द, अपना अर्थ, अपनी जुबानी| 


कुछ खड़े रह गए खोये-खोये से, 
कुछ लिख गए शब्द जागे-सोये से| 
कुछ नया लिखने को उत्प्रेरित हुए, 
और कुछ साहसिक लेखक उद्घोषित हुए| 


हूँ खड़ा कहाँ मैं, 
लगा हूँ यह जाने में| 
एक नहीं मैं, शायद, सब हूँ| 
हैं इंतज़ार रब की सुनू, 
जो रहता मेरे अन्दर हैं 
और कहता बहुत धीरे हैं, 
कि इस जिंदगी के खोज का 
अंत कहाँ और कहाँ सिरे हैं| 

Saturday, June 12, 2010

जिंदगी एक पहेली

जिंदगी एक पहेली, 
                        एक खोज हैं|
जिंदगी एक दर्द, 
                        एक मस्ती-मौज हैं|
जिंदगी एक कहानी, 
                        एक सोच हैं|
जिंदगी एक जंग, 
                        हर-रोज़ हैं|

Friday, June 11, 2010

हूँ लिख-लिख के सब भूल गया

हूँ लिख-लिख के सब भूल गया
मैं क्या छोड़ा, क्या याद किया |


शब्दों के बीच खो गया, जाने 
कब, तुम से फरियाद किया |


अब मिट गया वो दर्द जो कभी 
दिल को मेरे आबाद किया |


जी रहा हूँ संग अपने, देखो,
सूनेपन को बर्बाद किया |


करना था जो पहले मुझको,  
क्यूँ सब करने के बाद किया ?


क्या याद किया, क्या फ़रियाद किया
क्यूँ सब करने के बाद किया ?

Thursday, June 10, 2010

हजारों ख्वाहिशें ऐसी...3

ले लूँ तपिश धरती की, 
मैं फैला दूँ शितलता,
निकाल द्वेष ह्रदय से,
मैं भर सकूँ निर्मलता 
हे नाथ, क्या यह
लगती मुमकिन सी?


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी|


प्रेम करना
इतना मुश्किल,
जल रहा 
सबका दिल,
बन सावन फुहार
मैं बरसू झड़ी सी |


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी|


Friday, June 04, 2010

हजारों ख्वाहिशें ऐसी...2

ख्वाबों के पंख इस जहाँ,
उस जहाँ के होते|
उड़ान उसकी बेपरवाह,
आसमां के होते|
उड़ जाऊं मैं, हवाओं में,
ख्वाब-पंख फेलाए चिड़िया सी|


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी|


हैं शर्द मौसम,
गर्म कभी|
हैं जकड़न तो,
नर्म कभी|
तुषार हूँ, तपिश हूँ
मैं ओजस्वी|


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी|


बूंद एक आँखों से
कहते दिल का मर्म,
अदृश्य बूंद दिल के,
प्रेम, नफरत, घृणा या शर्म|
ना इन जैसी हूँ, 
मैं एक बूंद ओस की|


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी|

Wednesday, June 02, 2010

हजारों ख्वाहिशें ऐसी...1

बहती धरा पे छम-छम 
झूम के चलूँ मैं,
ऊपर आसमान से 
इठला के कहूँ मैं,
क्या आजादी तुम्हें, 
मिली हैं मुझ जैसी?


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी |


भँवरा जो भ्रमण
करता कुसुम का,
पान करता रस 
बन मासूम सा,
बन जाऊँ वो भ्रमर
मैं, हैं इक्छा ऐसी|


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी |


बदली जो घिरती सावन 
में, गाती राग मलार,
तृप्त हो गई धरती मानों,
ग्रीष्म की मनाए हार |
मुकुट-विजयी पहना के, 
नाचूँ धरा संग, बन रूपसि |


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी |


मेरा परिचय

भगवान हूँ,
शैतान हूँ,
तुम्हारी संतान हूँ, 
जग, कर मेरी जय| 
मेरा परिचय|


पाषाण हूँ,
परेशान हूँ,
आखिर इंसान हूँ|
लगता मुझको भय|
मेरा परिचय|


वरिष्ठ हूँ,
बलिष्ठ हूँ,
मैं कर्मनिष्ठ हूँ|
उर मेरा तेज़मय|
मेरा परिचय| 


आक्रांत हूँ,
शांत हूँ,
क्यूँ भ्रांत हूँ?
नहीं कोई आश्रय|
मेरा परिचय|


प्रेम हूँ,
नर्म हूँ,
शीतल कभी, गर्म हूँ|
ऐसा मैं अज्ञेय|  
मेरा परिचय|

क्या कहता हैं मेरा दिल

क्या कहता हैं मेरा दिल


क्यूँ हूँ शब्दों में शामिल ?
लिख लिख के क्या हासिल
कहीं और जाना, नहीं यह मंजिल
रस्ते जो मिलते, थोड़े मुश्किल
खुद ही सहारा, खुद ही कातिल
बस लहरों का संग, दूर साहिल.


डर मत पगले, अनजानों से मिल
उपवन का फूल तू, खुल के खिल
भर विश्वास उर में, अपनी किस्मत सिल
बन जा विशाल, जोड़ सपनों का तिल 
ये नहीं मुश्किल, ये नहीं मुश्किल,
बस, यहीं कहता मेरा दिल |

पहचान, खो गया कहीं

पहचान,
खो गया कहीं
इस भीड़ में|
साथ था,
पर अब नहीं|


पहचान,
जिसे सम्हाला, 
युगों से मैं,
एक पल में 
खो डाला|


पहचान,
गया कहाँ
न समझ पाया|
चौकन्ना था पर,
अब कहाँ |


पहचान,
अब बनाऊ कैसे,
गलती कहाँ,
खोजूं कहाँ 
और कैसे ?

Tuesday, June 01, 2010

कविता

कविता,
एक चिंतन,
              एक मंथन,
एक आगाज़,
              एक परिवर्तन,
एक सोच,
               एक खोज़,
एक भवर,
               एक भ्रमर,
एक क्रंदन,
              एक स्पंदन,
एक परिचय,
             एक पर-जय,
 एक दुहिता,
             एक परिणीता,
एक उल्लास,
            एक त्रास,
शायद,
           एक प्रेम,
या सिर्फ 
            एक भ्रम ?

कई बार गम में भी, कम ही सही, जीने की एक वजह खोजते

कई बार गम में भी, कम ही सही,
जीने की एक वजह खोजते
और,
कई बार खो जाते खुशियों की
भीड़ में, खुद को ही खोजते-खोजते |


कई बार मकसद-विहीन
हो के भी लीन रहते
और,
कई बार पास रह के
भी मंजिल नहीं पाते |


कई बार अपनों के बीच
भी, अपने खो जाते 
और,
कई बार बेगानों से निकल
आते जन्मों के नाते |


कई बार बातों में भी
शुकून नहीं मिलता
और,
कई बार बीन कहे ही
मन हैं खिलता |


कई बार सब मिलके
भी कुछ नहीं मिलता
और,
कई बार सब खो के भी
हम क्या नहीं पाते !

कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...