Wednesday, June 02, 2010

हजारों ख्वाहिशें ऐसी...1

बहती धरा पे छम-छम 
झूम के चलूँ मैं,
ऊपर आसमान से 
इठला के कहूँ मैं,
क्या आजादी तुम्हें, 
मिली हैं मुझ जैसी?


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी |


भँवरा जो भ्रमण
करता कुसुम का,
पान करता रस 
बन मासूम सा,
बन जाऊँ वो भ्रमर
मैं, हैं इक्छा ऐसी|


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी |


बदली जो घिरती सावन 
में, गाती राग मलार,
तृप्त हो गई धरती मानों,
ग्रीष्म की मनाए हार |
मुकुट-विजयी पहना के, 
नाचूँ धरा संग, बन रूपसि |


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी |


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