कविता,
एक चिंतन,
एक मंथन,
एक आगाज़,
एक परिवर्तन,
एक सोच,
एक खोज़,
एक भवर,
एक भ्रमर,
एक क्रंदन,
एक स्पंदन,
एक परिचय,
एक पर-जय,
एक दुहिता,
एक परिणीता,
एक उल्लास,
एक त्रास,
शायद,
एक प्रेम,
या सिर्फ
एक भ्रम ?
Tuesday, June 01, 2010
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कभी रगों के लहू से टपकी
कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से। टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...
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दूर तक जाते रास्तों पर मैं दूर तक चला. मिले पड़ाव कई मगर ठिकाना एक न मिला. बस अब नहीं, हर बार यह सोच, एक कदम और चला. जब मुड़ के देखा तब दिखा...
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कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से। टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...
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कई बार मैं सोचता हूँ खुद को खुद में खोजता हूँ | खो गया मैं कहाँ हर पल यही सोचता हूँ | चला था जिस मस्ती में कभी अब उस मस्ती को खोजता हू...
2 comments:
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .
Ek prem... ise padane ke baad confirm ho gaya...
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