Wednesday, June 02, 2010

क्या कहता हैं मेरा दिल

क्या कहता हैं मेरा दिल


क्यूँ हूँ शब्दों में शामिल ?
लिख लिख के क्या हासिल
कहीं और जाना, नहीं यह मंजिल
रस्ते जो मिलते, थोड़े मुश्किल
खुद ही सहारा, खुद ही कातिल
बस लहरों का संग, दूर साहिल.


डर मत पगले, अनजानों से मिल
उपवन का फूल तू, खुल के खिल
भर विश्वास उर में, अपनी किस्मत सिल
बन जा विशाल, जोड़ सपनों का तिल 
ये नहीं मुश्किल, ये नहीं मुश्किल,
बस, यहीं कहता मेरा दिल |

3 comments:

Ra said...

डर मत पगले, अनजानों से मिल
उपवन का फूल तू, खुल के खिल
भर विश्वास उर में, अपनी किस्मत सिल
बन जा विशाल, जोड़ सपनों का तिल
ये नहीं मुश्किल, ये नहीं मुश्किल,
बस, यहीं कहता मेरा दिल

बहुत अच्छी प्रस्तुति मित्र ,,,सुन्दर रचना हैhttp://athaah.blogspot.com/

संजय भास्‍कर said...

सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

संजय भास्‍कर said...

तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.

http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2010/05/blog-post_6458.html

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