Friday, June 11, 2010

हूँ लिख-लिख के सब भूल गया

हूँ लिख-लिख के सब भूल गया
मैं क्या छोड़ा, क्या याद किया |


शब्दों के बीच खो गया, जाने 
कब, तुम से फरियाद किया |


अब मिट गया वो दर्द जो कभी 
दिल को मेरे आबाद किया |


जी रहा हूँ संग अपने, देखो,
सूनेपन को बर्बाद किया |


करना था जो पहले मुझको,  
क्यूँ सब करने के बाद किया ?


क्या याद किया, क्या फ़रियाद किया
क्यूँ सब करने के बाद किया ?

No comments:

कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...