Friday, June 04, 2010

हजारों ख्वाहिशें ऐसी...2

ख्वाबों के पंख इस जहाँ,
उस जहाँ के होते|
उड़ान उसकी बेपरवाह,
आसमां के होते|
उड़ जाऊं मैं, हवाओं में,
ख्वाब-पंख फेलाए चिड़िया सी|


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी|


हैं शर्द मौसम,
गर्म कभी|
हैं जकड़न तो,
नर्म कभी|
तुषार हूँ, तपिश हूँ
मैं ओजस्वी|


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी|


बूंद एक आँखों से
कहते दिल का मर्म,
अदृश्य बूंद दिल के,
प्रेम, नफरत, घृणा या शर्म|
ना इन जैसी हूँ, 
मैं एक बूंद ओस की|


हजारों ख्वाहिशें ऐसी,
जाने कैसी, जाने कैसी|

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