Sunday, November 28, 2010

अजीब हल-चल हैं

अजीब हल-चल हैं
अजनबी पल हैं

जो साथ आज,
नहीं वो कल हैं

काली रात का
काला दलदल हैं

Saturday, November 13, 2010

आज रोते हुए भी खुश हूँ क्योंकि कल का पता नहीं

आज रोते हुए भी खुश हूँ क्योंकि कल का पता नहीं .
आज तो दर्द भी हैं साथ... कल इसका भी पता नहीं.
मंजिल हैं, राहें हैं, मगर मेरे चाल का पता नहीं .
मेरे कल का पता नहीं .
मेरे आज का पता नहीं.
मेरे कल का पता नहीं.

खोजता हूँ चाँद को उस फलक पे जिसका कोई पता नहीं.
बैठा इस उधेड़बुन में मैं कि कब सवेरा हो पता नहीं .
खुली जो आँखें कभी, हकीकत था या सपना पता नहीं .
मेरे कल का पता नहीं .
मेरे आज का पता नहीं.
मेरे कल का पता नहीं.

दुश्मनी कर ली खुद से जाने कब, पता नहीं .
मिले कोई कहाँ अब जब खुद का ही पता नहीं .

Friday, November 05, 2010

कई बार मैं सोचता हूँ, खुद को खुद में खोजता हूँ

कई बार मैं सोचता हूँ
खुद को खुद में खोजता हूँ |
खो गया मैं कहाँ
हर पल यही सोचता हूँ |
चला था जिस मस्ती में कभी
अब उस मस्ती को खोजता हूँ |
बदरंग नहीं हैं जिंदगी
फिरभी रंग को खोजता हूँ |
खुद को खुद में खोजता हूँ |


पत्ते-पत्ते झडे थे जिस डाली से
उस डाली के वृक्ष को खोजता हूँ |
भरी थी सावन में नदियाँ जिस बारिश से
उसके हर बूंद के बादल को खोजता हूँ |
मैं खुद में खुद को खोजता हूँ |


कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...