कई बार मैं सोचता हूँ
खुद को खुद में खोजता हूँ |
खो गया मैं कहाँ
हर पल यही सोचता हूँ |
चला था जिस मस्ती में कभी
अब उस मस्ती को खोजता हूँ |
बदरंग नहीं हैं जिंदगी
फिरभी रंग को खोजता हूँ |
खुद को खुद में खोजता हूँ |
खुद को खुद में खोजता हूँ |
खो गया मैं कहाँ
हर पल यही सोचता हूँ |
चला था जिस मस्ती में कभी
अब उस मस्ती को खोजता हूँ |
बदरंग नहीं हैं जिंदगी
फिरभी रंग को खोजता हूँ |
खुद को खुद में खोजता हूँ |
पत्ते-पत्ते झडे थे जिस डाली से
उस डाली के वृक्ष को खोजता हूँ |
भरी थी सावन में नदियाँ जिस बारिश से
उसके हर बूंद के बादल को खोजता हूँ |
मैं खुद में खुद को खोजता हूँ |
4 comments:
पत्ते-पत्ते झडे थे जिस डाली से
उस डाली के वृक्ष को खोजता हूँ |
भरी थी सावन में नदियाँ जिस बारिश से
उसके हर बूंद के बदल को खोजता हूँ |
मैं खुद में खुद को खोजता हूँ |
अति सुंदर............
आप को भी सपरिवार दिपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ
ati sunder rachana hai apki acha laga
bahut achi kavita hai.
very nice.
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