आज रोते हुए भी खुश हूँ क्योंकि कल का पता नहीं .
आज तो दर्द भी हैं साथ... कल इसका भी पता नहीं.
मंजिल हैं, राहें हैं, मगर मेरे चाल का पता नहीं .
मेरे कल का पता नहीं .
मेरे आज का पता नहीं.
मेरे कल का पता नहीं.
खोजता हूँ चाँद को उस फलक पे जिसका कोई पता नहीं.
बैठा इस उधेड़बुन में मैं कि कब सवेरा हो पता नहीं .
खुली जो आँखें कभी, हकीकत था या सपना पता नहीं .
मेरे कल का पता नहीं .
मेरे आज का पता नहीं.
मेरे कल का पता नहीं.
दुश्मनी कर ली खुद से जाने कब, पता नहीं .
मिले कोई कहाँ अब जब खुद का ही पता नहीं .
आज तो दर्द भी हैं साथ... कल इसका भी पता नहीं.
मंजिल हैं, राहें हैं, मगर मेरे चाल का पता नहीं .
मेरे कल का पता नहीं .
मेरे आज का पता नहीं.
मेरे कल का पता नहीं.
खोजता हूँ चाँद को उस फलक पे जिसका कोई पता नहीं.
बैठा इस उधेड़बुन में मैं कि कब सवेरा हो पता नहीं .
खुली जो आँखें कभी, हकीकत था या सपना पता नहीं .
मेरे कल का पता नहीं .
मेरे आज का पता नहीं.
मेरे कल का पता नहीं.
दुश्मनी कर ली खुद से जाने कब, पता नहीं .
मिले कोई कहाँ अब जब खुद का ही पता नहीं .
2 comments:
ai sundar
Great poetry.
I love it
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