Sunday, November 28, 2010

अजीब हल-चल हैं

अजीब हल-चल हैं
अजनबी पल हैं

जो साथ आज,
नहीं वो कल हैं

काली रात का
काला दलदल हैं

1 comment:

निर्मला कपिला said...

बहुत खूब। शुभकामनायें।

कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...