Sunday, August 17, 2008

रात का आलिंगन कर, जब आई एक नई सुबह

रात का आलिंगन कर
जब आई एक नई सुबह |

हर ओर उजाला फैलाती ,
लेकर किरण आई एक नई सुबह |

अचानक ही चहकने लगा जीवन
सुर में गाती आई एक नई सुबह |

डर और विस्मय को दे विराम
रगों में ऊर्जा भरने आई एक नई सुबह |

रुके हुए थे जो कदम, नई राह
को लेकर आई एक नई सुबह |

बढता जा रे पथिक, अविरत
तुझे लेने आई एक नई सुबह |

1 comment:

maverick said...

Yeh kavita padh kar mujhe school ke hindi book me padhi hui koi kavita yaad aa gai..not bcoz of wordings but Feelings...good one !

कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...