Monday, October 27, 2014

ओस की चादर ओढ़े

ओस की चादर ओढ़े हुए
देखो हरियाली अपने
ख्वाबों की समंदर
में डूबी जा रही हैं
बादलों के पीछे से
झांकता हुआ सूरज
मानो शर्माते हुए
कह रहा हैं-
देखो मैं आ गया,
अब तो आँखें खोलो

अंगड़ाई लेती हुई हरियाली
मंद-मंद शीतल बहती हुई
हवा के हाथों से
ओस के चादर को
अपने सिर तक खींचती हैं
और
करबट बदल के फिर सो जाती हैं

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