Monday, November 10, 2014

यह ख़ता हैं ख़ुदा की

यह ख़ता हैं ख़ुदा की
या सज़ा हैं चाँद की
कि अकेला हैं
तारों के साथ भी,
और
तारों के बाद भी

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कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...