Tuesday, November 18, 2014

शाम का घिरना

शाम का घिरना
बारिश का आना
ठंडी बहकी हवाओं में
दिल का सिहर जाना
कुछ ऐसा हैं मौसम 

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कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...