कुछ ही दूर,
और
और
कुछ ही देर
तो चला हूँ मैं।
लेकिन
ऐसे लगता हैं
जैसे
एक उम्र से,
एक उम्र तक
चला हूँ मैं।
कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से। टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...
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