Saturday, May 29, 2010

दर्द के बिना क्या ये जिंदगी अधूरी हैं?

दर्द के बिना क्या ये जिंदगी अधूरी हैं?
क्या ह्रदय-अवसाद का रिसना जरुरी हैं?
मातम मनाते रहे क्यूँ हर पल यहाँ,
क्या अविरत रोना हमारी मज़बूरी हैं?


विषाद ही मिला हैं अब तक चलते-चलते,
क्या संगिनी प्रियतम-प्रेरणा माधुरी हैं?
रिस गया हैं लहू जिस्म से सारा,
क्या प्राण-रस-बिन जिंदगी दुलारी हैं?


कंटकों के शर जो चुभ रहें हैं पाँव में
क्या तन मेरा हिम-स्थूल हिमाद्री हैं?
विस्मित हूँ, विरह-वेदना के घाव हरे हैं,
क्या नियति-नियोग, निश्चल-प्रेम पे भारी हैं?


पथरीले नयन, थके कदम, हतास मन
क्या यह विचिलित-व्यक्तित्व हमारी हैं!
जमे रक्त-संचार, जकड़ी नसें, मद्धम ह्रदय-गति 
क्या यह विकराल-काल यम की आरी हैं? 


यह क्या! अनायास ही बह चली
यह कैसी अमृतरस-कुसुम की बयारी हैं!
क्या मैं हूँ मरुस्थली-धरा पे या
हे देव, यह पावन-उपवन तुम्हारी हैं? 

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