काफिले कई लगे,
कारवां गुजरते गए
महफिले कई सजी,
मेहेरबा निकलते गए
सम्मा कई जली,
परवाने पिघते गए
(रूप की) आंधियां कई चली,
दीवाने मचलते गए
नदियाँ कई बही,
एक बूंद को तरसते रहे
सदियाँ कई बीती,
एक पल को लरसते रहे
कारवां गुजरते गए
महफिले कई सजी,
मेहेरबा निकलते गए
सम्मा कई जली,
परवाने पिघते गए
(रूप की) आंधियां कई चली,
दीवाने मचलते गए
नदियाँ कई बही,
एक बूंद को तरसते रहे
सदियाँ कई बीती,
एक पल को लरसते रहे
4 comments:
सुंदर अभिव्यक्ति। चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। हिंदी ब्लागिंग को आप और ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है।
http://gharkibaaten.blogspot.com
सुस्वागतम ..............आपका प्रयास बहुत अच्छा है.... मेरा दिल सचमुच बहुत सुंदर है....आपकी रचनायें भी बहुत अच्छी हैं....इसमें और निखार आये इसी कामना के साथ !
Awesome composition.. keep it dude!
" बाज़ार के बिस्तर पर स्खलित ज्ञान कभी क्रांति का जनक नहीं हो सकता "
हिंदी चिट्ठाकारी की सरस और रहस्यमई दुनिया में राज-समाज और जन की आवाज "जनोक्ति.कॉम "आपके इस सुन्दर चिट्ठे का स्वागत करता है . चिट्ठे की सार्थकता को बनाये रखें . अपने राजनैतिक , सामाजिक , आर्थिक , सांस्कृतिक और मीडिया से जुडे आलेख , कविता , कहानियां , व्यंग आदि जनोक्ति पर पोस्ट करने के लिए नीचे दिए गये
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