पिघलते हुए जलते मौम की लौ में
चमकता हुआ खुबसूरत तेरा चेहरा.
सरमाते हुए उगते चाँद की रौशनी में
गहराता हुआ इन घटाओं का पहरा.
थराते हुए सुर्ख होठों की ख़ामोशी में
गुम पड़े लफ़्ज़ों का संग, गहरा.
नम हुए खोजते आँखों की सरगोशी में
सोए पड़े एक ख्वाब का जागता सवेरा.
धड़कते हुए शांत दिल की धड़कन में
खोए किसी जज्बात का छुटता सहारा.
खींचे हुए परेशान भोंओं की शिहरण में
खोजता किसी डूबते विचारों का किनारा.
चमकता हुआ खुबसूरत तेरा चेहरा.
सरमाते हुए उगते चाँद की रौशनी में
गहराता हुआ इन घटाओं का पहरा.
थराते हुए सुर्ख होठों की ख़ामोशी में
गुम पड़े लफ़्ज़ों का संग, गहरा.
नम हुए खोजते आँखों की सरगोशी में
सोए पड़े एक ख्वाब का जागता सवेरा.
धड़कते हुए शांत दिल की धड़कन में
खोए किसी जज्बात का छुटता सहारा.
खींचे हुए परेशान भोंओं की शिहरण में
खोजता किसी डूबते विचारों का किनारा.
No comments:
Post a Comment