हर शाम यूँ ही खो जाती हैं और
यूँ ही हर शाम का इंतज़ार रहता हैं
हर चेहरे में उनका चेहरा देख
यूँ ही हर शाम का इंतज़ार रहता हैं
हर चेहरे में उनका चेहरा देख
यूँ ही दिल ज़ार-ज़ार रोता हैं
हर बहती हवा को रोक-रोक कर
यूँ ही इस प्रेम का आधार खोजता हैं
हर नदी की बूंद में डूब कर
यूँ ही इस नदी की धार खोजता हैं
इस जंग की जीत का कर बलिदान
यूँ ही खुद के लिए हार खोजता हैं
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