आज दोस्तों ने पूछा-
अब तो तुम्हारी कविताएँ
बदल गई होंगी ?
मैंने कहा- हाँ बिलकुल,
कल तक जो कागजों पे थी,
आज हकीकत बन गई है।
अब तो तुम्हारी कविताएँ
बदल गई होंगी ?
मैंने कहा- हाँ बिलकुल,
कल तक जो कागजों पे थी,
आज हकीकत बन गई है।
कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से। टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...
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