जाने वो कैसे आशिक थे
जो हदों को पार कर गए
आपने आशिकी के लिए
दिल में एक जूनून था
आँखों में क्या जोश था
भुजदंड में लोह प्रवाहित था
आवाज़ में क्या गर्जना थी
जाने वो कैसे आशिक थे।
पागलपन की चरम थे
रक्त प्रवाहित आँखें उनकी,
फिरभी हर वक़्त नम रहती
बिजली की झंकार सी झंकृत
दिल उनका जाने कैसे नर्म रहता
मानवता पर मिटने वाले
हर दिल में बसने वाले
क्या था प्रेम-रहस्य उनका
हाड़-मांस के इस पुतले में
जाने वो कैसा मर्म था
जाने वो कैसे आशिक थे।
जो हदों को पार कर गए
आपने आशिकी के लिए
दिल में एक जूनून था
आँखों में क्या जोश था
भुजदंड में लोह प्रवाहित था
आवाज़ में क्या गर्जना थी
जाने वो कैसे आशिक थे।
पागलपन की चरम थे
रक्त प्रवाहित आँखें उनकी,
फिरभी हर वक़्त नम रहती
बिजली की झंकार सी झंकृत
दिल उनका जाने कैसे नर्म रहता
मानवता पर मिटने वाले
हर दिल में बसने वाले
क्या था प्रेम-रहस्य उनका
हाड़-मांस के इस पुतले में
जाने वो कैसा मर्म था
जाने वो कैसे आशिक थे।
No comments:
Post a Comment