Monday, September 17, 2012

जाने वो कैसे आशिक थे

जाने वो कैसे आशिक थे
जो हदों को पार कर गए
आपने आशिकी के लिए

दिल में एक जूनून था
आँखों में क्या जोश था
भुजदंड में लोह प्रवाहित था
आवाज़ में क्या गर्जना थी
जाने वो कैसे आशिक थे।

पागलपन की चरम थे
रक्त प्रवाहित आँखें उनकी,
फिरभी हर वक़्त नम रहती
बिजली की झंकार सी झंकृत
दिल उनका जाने कैसे नर्म रहता

मानवता पर मिटने वाले
हर दिल में बसने वाले
क्या था प्रेम-रहस्य उनका
हाड़-मांस के इस पुतले में
जाने वो कैसा मर्म था
जाने वो कैसे आशिक थे।



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