Monday, September 17, 2012

कुछ लम्हे पहले, एक लम्हा को हम मिले थे

कुछ लम्हे पहले,
एक लम्हा को हम मिले थे
जाने वो कौन सा लम्हा था
अब याद नहीं
अब तो बस इतना याद हैं
तुमने मुझे देखा था
मैंने तुम्हे देखा था
शायद वो एक पल था
हाँ, वो एक पल ही तो था

दिल में ऐसी कसक उठी थी
जैसे कही बम फटा था
चिथड़े उड़े थे कई मगर
किसने उन्हें देखा था
किसने उन्हें देखा था

शर्म की बोटियाँ उडी थी तब,
बेशर्मी में जब हम दोनों ने,
एक दुसरे को,
उस लम्हे में देखा था।
आग तब भी उतनी उधर थी
आग तब भी उतनी इधर थी
जाने फिरभी,
वो कौन सी दिवार
शर्म की खड़ी थी
कि तुम उस पार खड़ी थी
और मैं इस पर खड़ा था ?

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