Saturday, August 04, 2012

बड़ी अजीब बात हैं, बातों का ही साथ हैं

बड़ी अजीब बात हैं 
बातों का ही साथ हैं 

मन सोचता बड़ी बात हैं
पर बातों का क्या औकात हैं 

दहक-दहक के जलती रात हैं 
और साथ जलती ये बात हैं 

कि अकेली रात हैं 
कहने को तारों का साथ हैं 

दिल में तन्हाई की विसात हैं 
जंग का आगाज़, जंग की बात हैं 


कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...