Tuesday, March 01, 2011

लम्हा-लम्हा टपक गया

लम्हा-लम्हा टपक गया
यादों के बादल से
गीली हो गई मन की मिट्टी
बातों के दल-दल से
फिसल रहे हैं दिल के कदम
बीते रातों के कल-कल से

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कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...