लम्हा-लम्हा टपक गया
यादों के बादल से
गीली हो गई मन की मिट्टी
बातों के दल-दल से
फिसल रहे हैं दिल के कदम
बीते रातों के कल-कल से
यादों के बादल से
गीली हो गई मन की मिट्टी
बातों के दल-दल से
फिसल रहे हैं दिल के कदम
बीते रातों के कल-कल से
कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से। टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...
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