तुम्हें भूल तो गया हूँ
लेकिन
तुम्हारी नज़रों का
टुटा हुआ सिरा
टुटा हुआ सिरा
अब भी कहीं
मेरे मन के
किसी कोने में
मेरे मन के
किसी कोने में
गड़ा हुआ हैं
जो रह-रह के
चुभता रहता हैं
जब कभी हमारी
आँखें मिलती हैं
कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से। टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...