डोल उठी धरती,
फट गया आसमां
गिर गए महल सारे
रो पड़ा इंसा।
क्यों दम्भ इतना,
जब हैं धूल जितना
किस बात पे तू इतराता हैं
अरे इंसान!
एक झटके में बिखर जाता हैं
कुछ तो हया करो तुम
प्रकृति से थोड़ा तो डरो तुम
मत भूलो
तना सर, कट जाता हैं
झुका हुआ आशीष पता हैं।