वक़्त की
पुरानी बस्ती में
आज फिर
यादों के
बिखरे टुकड़ों को
चुनने गया था,
ढूंढने गया था,
या शायद
खोने गया था।
पुरानी बस्ती में
आज फिर
यादों के
बिखरे टुकड़ों को
चुनने गया था,
ढूंढने गया था,
या शायद
खोने गया था।
कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से। टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...
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