जब से होश सम्हाल हैं
तबसे तुम्हें चलते देखा हैं
पल-पल की गिनती तुमसे होते देखा हैं
क्या कभी तुम थकती नहीं
साँसें,
क्यों कभी तुम रूकती नहीं!
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कभी रगों के लहू से टपकी
कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से। टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...
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दूर तक जाते रास्तों पर मैं दूर तक चला. मिले पड़ाव कई मगर ठिकाना एक न मिला. बस अब नहीं, हर बार यह सोच, एक कदम और चला. जब मुड़ के देखा तब दिखा...
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कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से। टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...
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कई बार मैं सोचता हूँ खुद को खुद में खोजता हूँ | खो गया मैं कहाँ हर पल यही सोचता हूँ | चला था जिस मस्ती में कभी अब उस मस्ती को खोजता हू...
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